"समझ ना पाए वो ,
चाहत हमारी बताने के भी बाद ,
कभी आंसू हटाया था रुखसार से मेरे,
आज डूबने को छोड़ गए ,
भर कर सैलाब."
बुधवार, सितंबर 08, 2010
आज डूबने को छोड़ गए , भर कर सैलाब.
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डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर ( लारा ) झारखण्ड बोकारो थर्मल से । शिक्षा -इतिहास (प्रतिष्ठा)बी.ए. , संगणक विज्ञान बी.सी .ए. , हिंदी से बी.एड , हिंदी ,इतिहास में स्नातकोत्तर | हिंदी में पी.एच. डी. | | राष्ट्रीय मंचों पर काव्य पाठ | प्रथम काव्यकृति ----"स्वप्न मरते नहीं ग़ज़ल संग्रह " चाँदनी रात “ संकलन "काव्य संग्रह " ह्रदय तारों का स्पन्दन , पगडंडियाँ " व् मृगतृष्णा " में ग़ज़लें | हिंदी- उर्दू पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । कई राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित ।
"समझ ना पाए वो ,
चाहत हमारी बताने के भी बाद ,
कभी आंसू हटाया था रुखसार से मेरे,
आज डूबने को छोड़ गए ,
भर कर सैलाब."
5 comments:
aap kam shabdo me bahut kuchh kaha deti hai............yahi aapkii khoobi hai
sukriya mam ye to aapka sneh hai jo mujhe prerit kar raha aur bhi achha likhne ka.
बहुत खूब कहा कम शब्दों में.
rajni ji
dard ki behad gahri anubhuti
sameer ji ......... hardik sukriya kafi dinobaad aaye achha laga aapka aana........
upendra ji hardik sukriya aapko bhi yun hi sneh bana rahe.......
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