सोमवार, जुलाई 26, 2010

ये नशा , शराब का नहीं, उनकी आँखों का है.

 लोग कहते हैं मुझे,
बिन पिए ही झूमते हो,
क्या बताऊ ,
उनकी आँखों में ,
नशा ही,
 सौ बोतल का है
ये नशा ,
शराब का नहीं,
उनकी आँखों का है.

रविवार, जुलाई 25, 2010

बस अब एक, दूरी रह गयी , ख्वाब और, पलकों के दरमियाँ ."

" आज भी वो ख्वाब है,
मेरे पलकों पर,
जो मुद्दत पहले ,
कभी देखा था,
पूरी ना हुई,
बस अब एक,
दूरी रह गयी ,
ख्वाब और,
पलकों के दरमियाँ ."

बुधवार, जुलाई 21, 2010

खुद की पहचान भूल गयी.

"मुद्दत से संवारा था,
जिस अक्स को निगाहों ने,
आज उसे देखते ही,
खुद की पहचान भूल गयी.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

जब चाँद पूछता है मुझसे

जब चाँद पूछता है मुझसे,
तुम किस बात पे,
यूँ इठलाती हो,
तब मेरा इठलाना ,
कुछ और बढ़  jata   है,
बड़े ही इठलाते अंदाज़ में ,
मैं उससे कहती हूँ,
 जैसे तेरी चांदनी है,
 तेरी चांदनी से भी प्यारा ,
 मेरा जीवनसाथी है ,
जब चाँद पूछता है मुझसे,
तुम किस बात पे यूँ ,
इठलाती हो,
तब मेरी धड़कन सीने की,
 और बढ़ जाती है,
बड़े ही इठलाते अंदाज़ में ,
मैं उससे कहती हूँ,
जैसे चकोर ,
तुझे देखने को ,
रोज आता है,
मेरे चाँद का भी,
 मुझसे ,
ऐसा प्यारा नाता है,
जब चाँद पूछता है मुझसे,
तुम किस बात पे यूँ ,
शर्माती हो,
तब मेरा शरमाना ,
और बढ़ जाता है,
बड़े ही शर्माते अंदाज़ में ,
मैं उससे कहती हूँ,
मेरे चाँद का ये कहना है,
वो चाँद आसमां  का,
 तेरा ही एक टुकडा है,
 उस चाँद से प्यारा ,
सलोना तेरा मुखड़ा है,
जब सुनती हूँ अपने बारे में,
 मेरा इठलाना ,
और बढ़ जाता है,
मै कहती हूँ चाँद से ,
तेरे पास जैसे ,
तेरी चांदनी है,
 तेरी चांदनी से भी प्यारा ,
 मेरा जीवनसाथी है ,
अब चाँद कहता है मुझसे,
बिना तेल जो जल जाए ,
तू वैसी बाती है,
किस्मतवाला है वो ,
तू जिसकी जीवनसाथी है,
अब चाँद कहता है मुझसे,
इठ्लानेवाली बात है ये,
तू जिसपे इठलाती है,
किस्मतवाला है वो,
तू जिसकी साथी है.
"rajni"
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मंगलवार, जुलाई 20, 2010

बादलों की , आगोश में जाकर, चाँद और निखर गया,

"बादलों की ,
आगोश में जाकर,
चाँद और निखर गया,
मिली जब ,
चांदनी उससे ,
बहुत उलझन में,
पड़ गयी ."
"rajni "

हर कोई , बन जायेगा , समंदर यहाँ "

" निगाहें ,
दरिया नहीं बन पायेगी,
जब ,
हर कोई ,
बन जायेगा ,
समंदर यहाँ "

सोमवार, जुलाई 19, 2010

कि ढल रही है शाम , अब तो आ जाओ".

"पथरा सी गयी निगाहें,
दीदार को,
फुरकत से ,
अब तो ख्वाब बन ,
कर छा जाओ,
 तेरी मंजिल कि  ,
डगर रुक गयी है .
कि ढल रही है शाम ,
अब तो आ जाओ".

गुरुवार, जुलाई 15, 2010

बिन पिए ही, मदहोश बना डाला , उनकी नशीली आँखों ने,

बिन पिए ही, मदहोश बना डाला ,
उनकी नशीली आँखों ने,
देखो क्या हाल हमारा है,
डूब के उनकी आँखों में,
सोंच इस मयकदे में आया,
ज़िन्दगी मिल जाएगी,
हमें क्या मालूम था,
डूब मरने को ,
ये निगाहें दरिया मिल जाएगी.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

बुधवार, जुलाई 14, 2010

पर मेरे मन की धरा तो प्यासी ही रह जाती है

ऐ  सावन जब भी आता तू ,प्यास ज़मीन   की बुझ जाती है,
पर   मेरे   मन   की  धरा  तो  प्यासी  ही रह  जाती  है.

तेरे    आने से   ये  मौसम  रंगीं, रुत  जवां  हो  जाता है ,
खिल जाती हैं बाग़ की कलियाँ, भवरों के मन मुस्काते हैं.

मेरा   गुलशन     ऐसे     बिखरा ,  जैसे   टूटी   डाली हो,
मेरा    अंतर   ऐसे   सूना ,जैसे    बाग़   बिन   माली  हो.

इस   विरह से आतप  धरती को  तो ,दुल्हन कर जाते हो,
पर  मेरे   नस-नस    में दामिनियों   के दंश   गिराते   हो .

ए सावन  जब  भी  आता तू ,प्यास ज़मीन  की बुझ जाती है,
पर     मेरे  मन  की  धरा   तो  प्यासी    ही रह   जाती  है.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

मंगलवार, जुलाई 13, 2010

बारिश का मौसम, सा जीवन,

"बारिश का मौसम,
सा जीवन,
भीगी जमीन सी ,
इसकी राहें,
सावन सा पंकिला ,
मुश्किल, उलझन ,
जो  ना संभले ,
इसकी  राह में ,
उनके कदम ,
मंजिल से पहले ही,
लड़खड़ा कर,
फिसल जाते हैं. "
"rajni"

रविवार, जुलाई 11, 2010

जब, चुनौती का सागर, गहरा हो ."

"
चुनौती के ,
सागर में,
डूबना ,
तभी सफल,
और,
आनंददायक,
लगता है
जब,
चुनौती का सागर,
गहरा हो ."

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

मंगलवार, जुलाई 06, 2010

मुझे ही खबर नहीं

लुट गयी बस्ती मेरे हाथों, मुझे ही खबर नहीं,
मालूम चला ,जब खुद को तन्हा पाया ,उसी बाज़ार में.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

जब भी , हँसने की , तैयारी की मैंने,

इस (दुनिया के )रंग मंच पर ,
उपरवाले को ,
मेरा ही  किरदार,
क्यों भाया , 
जब भी ,
हँसने की ,
तैयारी की मैंने,
उसने,
 रोने का,
 किरदार ,
थमा दिया .

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

आज वो कान्धा छूट गया

"जिस गुलशन ने ,
खिलना सिखाया था,
हमसे ही लूट गया,
रोया करते थे,
जिस पर लग कर,
आज वो कान्धा  छूट गया."

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

सोमवार, जुलाई 05, 2010

शब्दों से भींगा हुआ पन्ना बन जाता है, साहित्य का इतिहास .

मन की भाषा को ,
जुबान मिलती है ,
पन्नों में आकर ,
कुछ भाषा ,
आँखों से खोली जाती हैं.
कुछ को,
खोलने के लिए,
 पन्नों को ,
भिंगोना होता है .
शब्दों से ,
भींगा हुआ पन्ना,
बन जाता है,
साहित्य का,
इतिहास ..

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

रविवार, जुलाई 04, 2010

कोई वादों की डोर से , बंध कर टूट जाता है.

तोड़ जाता है कोई ,
वादों की डोर को,
कोई वादों की डोर से  ,
बंध कर टूट जाता है.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

शुक्रवार, जुलाई 02, 2010

दर्द से रिश्ता (एक अनुभूति ,मेरे जीवन की)

दर्द से रिश्ता (एक अनुभूति ,मेरे जीवन की)

मैंने सुख दुःख के,
तानों ,बानो  से,
एक गुल है बनाया,
सुख को छोड़ ,
मैंने दुःख को ,
अपना बनाया.

मैंने ऐसा जाल बुना,
ना जाने क्यों ?
मैंने दुःख को चुना.

जीवन में मिठास की तलाश,
हर किसी को होती है,
जिसको पाने की चाह,
हर किसी को होती है.

मैंने भी,जीवन में,
दर्द के साथ मिठास को पाया,
फिर भी ना जाने क्यों,
मुझे दर्द ही भाया.

बड़े कम समय में दर्द ,
जीना सीखा देता  है,
हँसते हुए लोगों को,
रोना सीखा देता है.

हमने सुख के संसार में ,
रहते हुए भी ,
दर्द को महसूस किया,
इसके हर एक कसक को,
अपने अंदर महफूज किया.

दर्द के साथ जुडा हुआ,
सारा जहान है,
दर्द को भी झेल जाना ,
एक इम्तिहान है.

दर्द के साथ मेरा अब तो ,
ऐसा नाता है,
दर्द हर ख़ुशी से पहले,
मेरे चेहरे पर आ जाता है.

दर्द से जुड़ गया ,
एक रिस्ता मेरा खास है,
अब तो दर्द मेरे आगे,
मेरे पीछे, मेरे साथ है.

मैंने एक ऐसा जाल बुना,
ना जाने क्यों मैंने,
फूलों  को छोड़,
काँटों को  चुना.

मैंने ऐसा जाल बुना,
ना जाने क्यों ?
मैंने दर्द  को चुना.