बुधवार, मई 05, 2010

तू बन जमीं किसी के वास्ते

चलने की कर तू शुरू ,
मंजिल की तलाश में,
राह का क्या है ,
वो खुद ही बन जायेगा,
मानती हूँ,
ठोकर भी ,
आते हैं राह में,
तू बन जमीं ,
किसी के वास्ते ,
कोई तेरा,
आसमां बन जायेगा.

"रजनी "

8 comments:

nilesh mathur ने कहा…

चलने की कर सुरुआत
मंजिल की तलाश में
राह का क्या
वो खुद बन जाएगी
मानती हूँ ठोकरें भी खाओगे राह में
तू बन ज़मी किसी के वास्ते!

थोडा सा फेरबदल किया है बुरा मत मानियेगा!

nilesh mathur ने कहा…

कोई तेरा आसमा बन जाएगा ! ये पंक्ति छूट गयी थी!

Manjit Thakur ने कहा…

खूबसूरत पंक्रियां.. लिखती रहें। साधुवाद

Ra ने कहा…

सुन्दर कविता में छुपा एक प्रेरक सन्देश .....धन्यबाद

http://athaah.blogspot.com/

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया है.

संजय भास्‍कर ने कहा…

हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut hi gahre ehsaason kee zameen hai

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

aap sabhi ko hardik naman ,aapsbka sneh milta rahe