रविवार, दिसंबर 11, 2011

मै दीया था सर-ए - राह जलता रहा,

  जिनको चाहा किये दोस्तों की तरह,
  वो बदलते रहे मौसमों की तरह .

मै दीया था सर-ए  - राह जलता रहा,
आंधियां तेज़ थी पागलों की तरह.


है तकद्दुस दिलों में  जर- ओ - माल का ,
जाने क्यों मंदिरों मस्जिदों की तरह.

वह घड़ी भर में झंझोड़ कर चल दिया,
मेरे जज्बात को आँधियों की तरह.

दास्तान -ए-दर्द  दिल मेरी आँखों से ,
आज "रजनी" रवाँ आंसुओं की तरह .

तकद्दुस--श्रद्धा
रवाँ -- बहना ,जारी रहना.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "