अक्ल पर पड़ा पत्थर को पिघलना तो होगा,
आज न कल समाज को बदलना तो होगा.
एक दिन में ही नहीं रचा जाता इतिहास है,
आम इंसां ही कर्मो से बन जाता खास है.
आज मैं अकेली हूँ, कल हम बन जायेंगे,
आप भी जब एक एक अपने कदम बढ़ाएंगे.
बेटा बेटा करनेवालों ,पोते कहाँ से पाओगे ?
मारते जा रहे कोख में बेटी, कैसे वंश बढाओगे.?
उन्मादी इच्छाओं को यदि ,अपने अन्दर न मारेगा,
कौन तुम्हारे बेटों के बीज को, अपने अंदर धारेगा.
चाहते हो सिलसिला चलता रहे, तुम्हारे वंश के बेलों का,
अंत करना होगा ,कोख में बेटी को मारनेवाले खेलों का .
सृष्टि की रचना का, ये एक विधान है,
फर्क नहीं बेटा बेटी में , दोनों एक समान हैं.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
रविवार, जुलाई 10, 2011
मारते जा रहे कोख में बेटी ,कैसे वंश बढाओगे ?
Posted by रजनी मल्होत्रा नैय्यर at 10.7.11 26 comments Links to this post
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