शुक्रवार, जनवरी 15, 2010

वो रह लिए जिंदा, जिनके दर्द आंसुओ में बह गए|

मेरी ये रचना जो मैंने बहुत पहले लिखी थी...........आज आपसब के बीच ...

रुंध कर रह गयी आवाज़ मेरी,
जब आपको सामने पाई|

खुलते, खुलते रह गए,
लब मेरे,
दिल से बात लब तक ना आ पाई,

आपकी ख़ामोशी को हम समझ ना पाए ,
मेरे आवाज़ में थी वो दम,
जो आप ना सुन पाए|

दर्द से बना सैलाब मन के अंदर,
बहुत तड़पा,बहुत मचला,
पर सागर ही रहा,
नदियाँ बन कर बह ना पाए|

हसरत थी कुछ कहने की,
रह गया बस,फ़साना,
हम कह ना पाए,आप सुन ना पाए|

छोटा सा दर्द ये,
नासूर बन कर रह गया,
वो रह लिए जिंदा,
जिनके दर्द आंसुओ में बह गए|