" उठ गया चिलमन ,
उनके,
हर हसीन राज़ से,
फिर भी ,
वो,
खुद को ,
पर्दानशी कहते रहे."
"रजनी "
डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर ( लारा ) झारखण्ड बोकारो थर्मल से । शिक्षा -इतिहास (प्रतिष्ठा)बी.ए. , संगणक विज्ञान बी.सी .ए. , हिंदी से बी.एड , हिंदी ,इतिहास में स्नातकोत्तर | हिंदी में पी.एच. डी. | | राष्ट्रीय मंचों पर काव्य पाठ | प्रथम काव्यकृति ----"स्वप्न मरते नहीं ग़ज़ल संग्रह " चाँदनी रात “ संकलन "काव्य संग्रह " ह्रदय तारों का स्पन्दन , पगडंडियाँ " व् मृगतृष्णा " में ग़ज़लें | हिंदी- उर्दू पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । कई राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित ।
5 comments:
very nice rajni ji
उफ्फ... फ... फ..सच बेहद प्रभावशाली अपनापन लाजवाब
bahut umdaa hai
Wah Rajani ji...........lajawab likha hai apne ....
1.जिस आसमां ने मुझको चमकना सिखाया , आज खुद से वो ,मेरा दामन छुड़ा गए
2.सागर में रहकर भी, प्यासे रह गये
3.वो, खुद को , पर्दानशी कहते रहे
bahoot khub........please scrap me on orkut ..
Ravi humsafar
kya main is rachnaa ko 1 vyangya k rup me dekhun..agar haan to ye rachnaa taarif k kaaabil hai
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