शनिवार, जनवरी 16, 2010

वक़्त की आंधी ने हमें रेत बना दिया

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वक़्त   की   आंधी   ने   हमें  रेत   बना  दिया,
हम   भी     कभी    चट्टान   हुआ     करते  थे |

मौसम   के   रुख   ने  हमें   मोम   बना   दिया,
हम भी   कभी   धधकती  आग   हुआ  करते थे|

आज   हिम    सा शून्य   नज़र  आ रहे   हैं  हम,
हम   भी    कभी   रवि   से तेज़ हुआ   करते  थे|

एक     झंझावत से   गिरे पंखुडियां , शूल  रह गए
हम भी कभी गुलाबों से भरे गुलशन हुआ  करते थे|

विवशता    ने हमें   सिन्धु   सा   बना   दिया है शांत,
हम भी कभी मदमस्त उफनती सरिता हुआ करते थे|.

वो   अपने     ही     थके      क़दमों    के   निशां   हैं,
जो   कभी    हिरणों    सी  चौकड़ियाँ   भरा करते थे.|

वक़्त   की     आंधी    ने     हमें     रेत   बना   दिया,
हम    भी        कभी    चट्टान    हुआ     करते      थे|

3 comments:

amrendra "amar" ने कहा…

wakt insaan ko kabhi kabhi itna majboor ker deta hai ki insaa bebas sa najer aata hai .....
bahut acchi lines .........lajwab.

dr vikastomar ने कहा…

एक झंझावत से गिरे पंखुडियां , शूल रह गए

bahaut hi acchi rachna hai ...god bless u

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

thanks amrendra ji ...........thanks vikas bhaiya ....