गुरुवार, नवंबर 18, 2010

क्योंकि जानती हूँ उसमे काफी गहराई है

छोड़ आई हूँ ,
सारा खारापन
आज सागर के पास |
किनारे पर,
मुझे विचलित सा देख
एक लहर मुझसे टकराई
और कहा ?
दे दो,  अपनी आँखों की नमी
इसके खारापन को
 इसे समेट लूँ  मै  ख़ुद में ।
क्योंकि,
मुझमे असीम धैर्य
और  गहराई है ।
मै भी
शांत चित से छोड़ आई
अपना सारा खारापन ,
सागर के पास ।
क्योंकि जानती हूँ
उसमें  काफी गहराई है।

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"

9 comments:

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

bahoot hi gahre ehsas...........

Khare A ने कहा…

wonderful creation

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

sukriya aapdono ko ...........abhi vayst hone k karan nahi likh pa rahi ..........jald hi aapsbhi k blog par aaungi ..........ekbaar fir hardik sukriya.......

Pawan Kumar ने कहा…

ब्लॉग पर आने का शुक्रिया........आपकी कविता बहुत प्रभावी है.......!!!!

Aditya Tikku ने कहा…

Rajniji - shabdo aur bhavo ka atulniy misharan ****

Kunwar Kusumesh ने कहा…

भावाभिव्यक्ति बहुत सुन्दर और नई तरह की लगी.बधाई.

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

mera hardik aabhar aap sabhi ko ,sneh yun hi milta rahe

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

aap jaise mridul bhawo wali kaviyatri se yahi ummid thi...:)
god bless you>