छोड़ आई हूँ ,
सारा खारापन
आज सागर के पास |
किनारे पर,
मुझे विचलित सा देख
एक लहर मुझसे टकराई
और कहा ?
दे दो, अपनी आँखों की नमी
इसके खारापन को
मुझमे असीम धैर्य
और गहराई है ।
मै भी
शांत चित से छोड़ आई
अपना सारा खारापन ,
सागर के पास ।
क्योंकि जानती हूँ
उसमें काफी गहराई है।
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
सारा खारापन
आज सागर के पास |
किनारे पर,
मुझे विचलित सा देख
एक लहर मुझसे टकराई
और कहा ?
दे दो, अपनी आँखों की नमी
इसके खारापन को
इसे समेट लूँ मै ख़ुद में ।
क्योंकि,मुझमे असीम धैर्य
और गहराई है ।
मै भी
शांत चित से छोड़ आई
अपना सारा खारापन ,
सागर के पास ।
क्योंकि जानती हूँ
उसमें काफी गहराई है।
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
9 comments:
bahoot hi gahre ehsas...........
wonderful creation
sukriya aapdono ko ...........abhi vayst hone k karan nahi likh pa rahi ..........jald hi aapsbhi k blog par aaungi ..........ekbaar fir hardik sukriya.......
ब्लॉग पर आने का शुक्रिया........आपकी कविता बहुत प्रभावी है.......!!!!
Rajniji - shabdo aur bhavo ka atulniy misharan ****
भावाभिव्यक्ति बहुत सुन्दर और नई तरह की लगी.बधाई.
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
mera hardik aabhar aap sabhi ko ,sneh yun hi milta rahe
aap jaise mridul bhawo wali kaviyatri se yahi ummid thi...:)
god bless you>
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