"क्यों ,
उसे ही पाना चाहता है मन ,
जो किस्मत की
लकीर में नहीं होता,
मैंने तो लकीरों पर,
भरोसा करना छोड़ दिया ."
" रजनी "
शुक्रवार, मई 07, 2010
मैंने तो लकीरों पर भरोसा करना छोड़ दिया
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डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर ( लारा ) झारखण्ड बोकारो थर्मल से । शिक्षा -इतिहास (प्रतिष्ठा)बी.ए. , संगणक विज्ञान बी.सी .ए. , हिंदी से बी.एड , हिंदी ,इतिहास में स्नातकोत्तर | हिंदी में पी.एच. डी. | | राष्ट्रीय मंचों पर काव्य पाठ | प्रथम काव्यकृति ----"स्वप्न मरते नहीं ग़ज़ल संग्रह " चाँदनी रात “ संकलन "काव्य संग्रह " ह्रदय तारों का स्पन्दन , पगडंडियाँ " व् मृगतृष्णा " में ग़ज़लें | हिंदी- उर्दू पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । कई राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित ।
"क्यों ,
उसे ही पाना चाहता है मन ,
जो किस्मत की
लकीर में नहीं होता,
मैंने तो लकीरों पर,
भरोसा करना छोड़ दिया ."
" रजनी "
8 comments:
छोटी किन्तु अच्छे भाव रजनी जी। किसी ने कहा है कि-
इतना भी यकीन न कर अपने हाथ की लकीरों पर
किस्मत तो उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
sadar abhar suman ji aapki ye shabd under tak chhu gaye.
Rajniji - once again too good
बेहद ही खुबसूरत और मनमोहक...
हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.
aaditya ji. bahut bahut dhnyavaad aapka.
sanjay ji aapko bhi hardik sukriya.
bahut dard hai dost aap ke dil me.
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