शुक्रवार, मई 07, 2010

मैंने तो लकीरों पर भरोसा करना छोड़ दिया

"क्यों ,
उसे ही पाना चाहता है मन ,
जो किस्मत की
लकीर में  नहीं होता,
 मैंने  तो लकीरों पर,
भरोसा  करना छोड़ दिया ."

 " रजनी "

8 comments:

श्यामल सुमन ने कहा…

छोटी किन्तु अच्छे भाव रजनी जी। किसी ने कहा है कि-

इतना भी यकीन न कर अपने हाथ की लकीरों पर
किस्मत तो उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

sadar abhar suman ji aapki ye shabd under tak chhu gaye.

Aditya Tikku ने कहा…

Rajniji - once again too good

संजय भास्‍कर ने कहा…

बेहद ही खुबसूरत और मनमोहक...

संजय भास्‍कर ने कहा…

हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

aaditya ji. bahut bahut dhnyavaad aapka.

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

sanjay ji aapko bhi hardik sukriya.

Unknown ने कहा…

bahut dard hai dost aap ke dil me.