इन्सान की शक्ल में जहाँ हैवान बस जाते हैं,
वहां आसानी से जज्बों के मकान बह जाते हैं.
लाख छल से लोग अपनी बात में भारी हों,
एक दिन तो सच के आगे खामोश रह जाते हैं.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा".
सोमवार, अक्तूबर 04, 2010
इन्सान की शक्ल में जहाँ हैवान बस जाते हैं
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3 comments:
bahut khoob kaha rajni
sachhi bat
sachhai kabhi nhi chhupti
Very nice.... Good one
AAP DONO KO MERA HARDIK PRANAM ....
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