लुट गयी बस्ती मेरे हाथों, मुझे ही खबर नहीं,
मालूम चला ,जब खुद को तन्हा पाया ,उसी बाज़ार में.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
मंगलवार, जुलाई 06, 2010
मुझे ही खबर नहीं
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डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर ( लारा ) झारखण्ड बोकारो थर्मल से । शिक्षा -इतिहास (प्रतिष्ठा)बी.ए. , संगणक विज्ञान बी.सी .ए. , हिंदी से बी.एड , हिंदी ,इतिहास में स्नातकोत्तर | हिंदी में पी.एच. डी. | | राष्ट्रीय मंचों पर काव्य पाठ | प्रथम काव्यकृति ----"स्वप्न मरते नहीं ग़ज़ल संग्रह " चाँदनी रात “ संकलन "काव्य संग्रह " ह्रदय तारों का स्पन्दन , पगडंडियाँ " व् मृगतृष्णा " में ग़ज़लें | हिंदी- उर्दू पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । कई राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित ।
लुट गयी बस्ती मेरे हाथों, मुझे ही खबर नहीं,
मालूम चला ,जब खुद को तन्हा पाया ,उसी बाज़ार में.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
4 comments:
aisa hi hota hai, ham sab kuchh luta kar bhi apne ko kabhi kabhi khush karte hain.........:)
behtareen panktiyan!!
wow maa'm kya baat hai aapki
agar ijjat ho aapki to ye do line main apni profile mein add karna cahta hun
Mukesh ji ..........sahi kaha par jab malum hota hai sirf malal ke kuchh baki nahi rahta.......
shailendra ji sukriya ...........
Hum aisi naadanian zindagi me ker baithte hain aur baad me ais aahsaas hota hai ki apni is haal ka jemmewaar to main khud hun........ bahut achaa likha... mujhe bahut acha lagaa.. shukria aisi rachna k lie
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