हमें कदम,कदम पर,
कुछ शरीरिक, मानसिक कठिनाइयों का सामना,
करना ही पड़ता है,
वैसे क्षण में ,
यदि कुछ बहुत ज्यादा याद आता है तो वो है..
... माँ का आँचल,
माँ की स्नेहल गोद ,माँ के प्रेम भरे बोल.
माँ क्या है?
तपती रेगिस्तान में पानी की फुहार जैसी,
थके राही के,
तेज़ धूप में छायादार वृक्ष के जैसे.
कहा भी जाता है,
मा ठंडियाँ छांवा,
माँ ठंडी छाया के सामान है
.जिनके सर पर माँ का साया हो ,
वो तो बहुत किस्मत के धनी होते है,
जिनके सर पे ये साया नहीं ,
उनसा बदनसीब कोई नहीं.
.. पर,
कुछ बच्चे ,
अपने पैरों पर खड़े होकर,
माता पिता से आँखें चुराने लगते हैं,
उन्हें उनकी सेवा,
देखभाल
उन्हें बोझ लगने लगती है..
जबकि उन्हें ,
अपना कर्तव्य,
पूरी निष्ठां से करने चाहिए.
"रजनी"
8 comments:
बहत सुन्दर ......माँ पर कुछ भी लिखो कम ही है
इस धरा पर मां ईश्वर की प्रतिनिधि है,क्या कहूं शब्द कम पढ़ जाते हैं।मां से दर्द का रिश्ता है।
बहुत उम्दा सीख! बढ़िया रचना.
वाह भावनाओं से परिपूर्ण रचना । मां के चरणों में जन्नत है ।
कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये
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इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना
और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये
aap sabhi ko is prashansha ke liye hardik abhinand....
behtareen aur khoobsoorat blog bhadhai.happy mothers day
utkrishth
tushar ji .........
aaditya ji aapdono ko hardik sukriya.
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