बिन पिए ही, मदहोश बना डाला ,
उनकी नशीली आँखों ने,
देखो क्या हाल हमारा है,
डूब के उनकी आँखों में,
सोंच इस मयकदे में आया,
ज़िन्दगी मिल जाएगी,
हमें क्या मालूम था,
डूब मरने को ,
ये निगाहें दरिया मिल जाएगी.
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
गुरुवार, जुलाई 15, 2010
बिन पिए ही, मदहोश बना डाला , उनकी नशीली आँखों ने,
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5 comments:
उम्दा कविता-उत्तम भाव
आपकी पोस्ट ब्लॉग4वार्ता में
भूली बिसरी बात पुरानी,
याद आई है एक कहानी
बहुत सुंदर !!
bahut khub kahi maa'm
kya tarif hai apne priyatam kiiiiiii
hardik aabhar aap logon ko .........
आपकी कविता भी मदहोश करने वाली है।
................
नाग बाबा का कारनामा।
व्यायाम और सेक्स का आपसी सम्बंध?
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