बुधवार, अक्तूबर 06, 2010

बुझने लगते हैं दीये हौसलों के, जब बुरे वक़्त की आंधी चलती है

बुझने  लगते  हैं दीये  हौसलों   के,
जब बुरे वक़्त की आंधी चलती है |

डगमगाते हैं हम राहों  में जीवन  के,
बुद्धि    नाकाम   हो   हाथ मलती  है |

जो   ना   हारें   नाकामी से  डर  के,
 तक़दीर सदा  संग उनके चलती है |

चीर   जाते हैं   जो  सीना  लहरों के,
उनसे  दुनिया  मिलने  में जलती  है |

क्यों  कमजोर  हों आगे   वक़्त   के,
ज़िन्दगी ऐसे ही करवटे  बदलती  है|

बुझने   लगते हैं   दीये   हौसलों   के,
जब   बुरे वक़्त की   आंधी चलती है|

"रजनी मल्होत्रा नैय्यर "

3 comments:

संजय भास्‍कर ने कहा…

इतने सारे खूबसूरत एहसास एक साथ ...
कैसे समेटे इन्हें एक टिप्पणी में
बहुत ख़ूबसूरत हमेशा की तरह ...!

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही गहरी बात कही रजनी मल्होत्रा नैय्यर जी बेहद खूबसूरत और जीवन की सच्चाइयों को बयाँ करती पोस्ट

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

sukriya bhai .........##