"कुछ इस तरह से,
टूटा,
वो आसमां से,
तारा,
जो टूट कर भी,
मुझे,
जोड़ता गया."
जितनी भी,
निराशा की
डोर ,
बंधी थी
मेरे,
मन में,
उस,
डोर की
कड़ी,
को वो,
तोड़ता गया.
शुक्रवार, जून 25, 2010
जो टूट कर भी, मुझे, जोड़ता गया
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3 comments:
utkrisht
aaditya ji aabhar j
कविता अच्छी लगी.....बधाई!
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