सजदा किया जिस देवता की वो पत्थर हो जायेगा,
क्या खबर थी मुझको वो बेवफा हो जायेगा.
प्रेम का दरिया बनकर हम तो उफन पड़े ,
क्या खबर थी मुझको वो सागर हो जायेगा.
छू कर हीरा कर डाला इस बूत से जिस्म को,
क्या खबर थी मुझको वो ऐसे तन्हा कर जायेगा.
मेरे हर दर्द को पीनेवाला समझ अमृत हर घूंट को,
क्या खबर थी अश्कों का जहर वो तन्हा पी जायेगा.
रूठना तो इश्क की दुनिया का दस्तूर है,
क्या खबर थी मुझको वो इतना दूर हो जायेगा.
हर शय पर जिसने मुझको पाया इस गुलिस्तान में,
क्या खबर थी मुझको वो इतना मगरूर हो जायेगा,
सजदा किया जिस देवता की वो पत्थर हो जायेगा,
क्या खबर थी मुझको वो बेवफा हो जायेगा.
"रजनी"
बुधवार, अप्रैल 28, 2010
क्या खबर थी मुझको वो इतना दूर हो जायेगा.
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13 comments:
bahut achaa Rajniji.... pata nahi kuch to is kavita me khaas hai jo kisi ke dil ko choo jaegaa
अति सुन्दर रचना !
सादर धन्यवाद !
रोमांचित करती है आपकी रचना।बधाई!
बहुत अच्छी लगी यह रचना...
अच्छी रचना.
आपको इस पोस्ट के लिए एक मेल की है जरूर देखें
bahut khoob rajni ji kafi dino baad aapke blog pe aana hua ... aapki sabhi rachnayein dil ko chhooo gayin ... badhayi swikaar karein
bahtrin bahut khub
badhia aap ko is ke liye
shkehar kumawat
bahut khoob
aapsabhi ka hardik sukriya.......
सजदा किया जिस देवता की वो पत्थर हो जायेगा,
क्या खबर थी मुझको वो बेवफा हो जायेगा....
KHUBSURAT RACHNA...ACCHA LIKHA HAI AAPNE!!!
Ye bhi jabardast hai.......
cant be commented bcz it is nt good to comment on anybody's emotions.
pls keep writting .
ye dhup me chhao ka ehsas dilata hai
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