बुधवार, मई 26, 2010

शब भर जलकर भी, मेरा सवेरा नहीं



"सबने जलाया ,
शब भर मुझे ,
सम्स के आते ही,
बुझा दिया.
क्यों मांगते हो,
मुझसे,
जो मेरा नहीं,
शब भर जलकर भी,
मेरा सवेरा नहीं ."

"रजनी "

सोमवार, मई 24, 2010

ये बंदिशें भी कैसी हैं

"ये बंदिशें भी कैसी हैं ,
कभी जुड़तीं हैं,
रस्मों के नाम से,
तो  कभी ,
बगावत से टूट जाती हैं,
ये  एक  ऐसी माला  है,
जिसके मनके की डोरी ,
खुद ,
गुन्धनेवाले  के हाथों ,
टूट  जाती है."

मंगलवार, मई 18, 2010

पत्थर समझता रहा

पत्थर समझता रहा मुझे,
आजतक शायद ,
तभी तो,
मेरे टूटने पर,
छू कर देखता रहा.

सोमवार, मई 10, 2010

फिर कैसे हँसकर, मिलन हो तुझसे

"ज़िन्दगी ,
तुझे,
मेरी खुशियाँ रास नहीं,
और,
मुझे समझौता ,
बता,
फिर कैसे हँसकर,
मिलन हो तुझसे "

Rajni Nayyar Malhotra.

शुक्रवार, मई 07, 2010

माँ का आँचल,


हम उम्र के किसी भी पड़ाव में हों,
हमें कदम,कदम पर,
कुछ शरीरिक, मानसिक कठिनाइयों का सामना,
करना ही पड़ता है,
वैसे क्षण में ,
यदि कुछ बहुत ज्यादा याद आता है तो वो है..
... माँ का आँचल,
माँ  की स्नेहल गोद ,माँ के प्रेम भरे बोल.
माँ क्या है?
तपती रेगिस्तान में पानी की फुहार जैसी,
थके राही के,
  तेज़ धूप में छायादार वृक्ष के जैसे.
कहा भी जाता है,
मा ठंडियाँ छांवा,
माँ ठंडी छाया के सामान है
.जिनके सर पर माँ का साया हो ,
वो तो बहुत किस्मत के धनी होते है,
जिनके सर पे ये साया नहीं ,
उनसा बदनसीब कोई नहीं.
.. पर,
कुछ बच्चे ,
अपने पैरों पर खड़े होकर,
 माता पिता से आँखें चुराने लगते हैं,
उन्हें  उनकी सेवा,
  देखभाल
उन्हें बोझ लगने लगती है..
जबकि उन्हें ,
अपना कर्तव्य,
पूरी निष्ठां से करने चाहिए.

"रजनी"

मैंने तो लकीरों पर भरोसा करना छोड़ दिया

"क्यों ,
उसे ही पाना चाहता है मन ,
जो किस्मत की
लकीर में  नहीं होता,
 मैंने  तो लकीरों पर,
भरोसा  करना छोड़ दिया ."

 " रजनी "

गुरुवार, मई 06, 2010

हम जहाँ खड़े थे वहीं खड़े रह जाते हैं,

जब जब सावन कि बूंदें कुछ,
टप,टप राग सुनाती हैं,
जब , जब कोयल   ,
अपनी ही राग गाती हैं,
हाँ कुछ,कुछ पल बीते लम्हों के,
मुझे भी सताते  है,
ये जब गुजरते हैं रुत के संग ,
मुझे भी कुछ याद दिलाती है,

बैठे अपने आंगन में ,
जब भ्रमरों का गुंजन सुनते है,
तब मन ही मन हम,
लाखों सपने अपने धुन में बुनते हैं,
कभी कभी तो नयन हमारे
 मूक दर्शक से रह जाते हैं,

जब टूट जाए सागर के बाँध तो
कमल को मेरे भिंगाते है,
खगों के कलरवों में गूंजती ,
मेरे भी अग्न बुझ जाते है,
जब हम भी अपनी अरमानों के संग
ऊँची उड़ान भर आते हैं,

कभी तितलियों के साथ
अपनी सांग लड़ते हैं,
कभी शबनम सा
खुद को ओझल पाते है,
पर कल्पनाओं का क्या,
कल्पना में तो हम
सारा ख्वाब पा जाते हैं,

जब टूटती है मेरी तन्द्रा,
तो खुद को वहीं बड़ी बेबस सा पाते है,
हम जहाँ खड़े थे वहीं खड़े रह जाते हैं,
कभी,कभी तो फूटकर,
फूटकर भाव विह्वल हो जाते है,
बस ये सोंचकर रह जाते हैं,
हम जहाँ थे क्यों वही पर रह जाते हैं,

जब जब सावन कि बूंदें ,
कुछ टप,टप राग सुनाती हैं,
जब कोयल कि कूक,
अपनी ही राग गाती हैं,
 हाँ कुछ,कुछ पल बीते लम्हों के
मुझे भी सताती है.


"रजनी ".

बुधवार, मई 05, 2010

तू बन जमीं किसी के वास्ते

चलने की कर तू शुरू ,
मंजिल की तलाश में,
राह का क्या है ,
वो खुद ही बन जायेगा,
मानती हूँ,
ठोकर भी ,
आते हैं राह में,
तू बन जमीं ,
किसी के वास्ते ,
कोई तेरा,
आसमां बन जायेगा.

"रजनी "

अब तो सर पर दूरी का ये तूफ़ान आ गया.


देखते   ही  उसे   मेरे  जिस्म में जान  आ गया ,
मेरे मदावा -ए-दर्द -ए-दिल का सामान आ गया.
 
 बाद -ए-सहर जैसी लगती  थी   जुदाई की बात
अब   तो सर   पर   दूरी का  ये तूफ़ान आ गया.

बहुत   लिए उल्फ़त  में    इम्तिहान   हम    तेरे,
अब   तो  अपनी   चाहत का  इम्तिहान आ गया.

तन्हाई   क्या होती   है खबर नहीं   थी दिल  को,
ज़िन्दगी  के इस मोड़ पर ,जैसे  श्मशान आ गया.

सीने में जलन आँखों  में  अश्कों का सैलाब   "रजनी"
जानेवाली थी जान , कि  दिल का  मेहमान आ गया.

"रजनी"

भर दो जाम से पैमाना मेरा




ये नज़्म बहुत पहले लिखी थी, ......
एक ज़िन्दगी से हारा हुआ इंसान जब शराब को अपना
सहारा समझता है तब मन में आये भाव कुछ ऐसे होते हैं,

भर दो जाम से पैमाना मेरा,
रोको न ,पी लेने दो ,

होश में हम आयें ना,
इतना तो पी लेने दो,

रोको ना पी लेने दो,
होश मेरा खोने दो,
एक   मुद्दत से प्यास थी मेरी,
आज प्यास   बुझ जाने दो,
वो देखो आ रही खुशियाँ ,
रोको उन्हें,
अब  न जाने दो,


छा रही है खुशबु,
महफ़िल में ,
भर जाने दो,
शीशे में उतर रही है ज़िन्दगी,
इसे  उतर जाने दो,

आयें ना होश में हम ,
इतना  नशा आने दो,
शर्म को आती है शर्म आज तो,
शर्म को शर्माने दो,


भर दो जाम से पैमाना मेरा,
रोको न अब  पी जाने दो,
दिखती है सबको चांदनी
आसमां में रातों को,
आसमां से आज चाँद को ,
ज़मीं  पर  उतर जाने दो,

लहरा रहे  हैं हम आज ,
हवा  के संग-संग ,
हमें आज तो लहराने दो,

बढ़ती जायेगी और नशा,
ज़रा  रात को गहराने दो,
भर दो जाम से पैमाना मेरा,
रोको न ,पी लेने दो ,
होश में हम आयें ना ,
इतना तो बहक जाने दो,

घबराते थे भय से ,पहले
अब तो सरक रही है,
भय कि चूनर,
चूनर और ज़रा  सरकाने दो,
रहे ना कोई चिलमन ,
दरमियाँ खुशियों के हमारे,
हर चिलमन हटाने दो,


खुशियाँ जो छिपी थी ,
चिलमन के पीछे ,
उन्हें पास तो मेरे आने दो,
सज रही है,
मेरे अरमानों की बस्ती,
  इसे और ज़रा  सज जाने दो,


जो भ्रम जीने न दे खुश होकर,
उस भ्रम को तज जाने दो,
,

भर दो जाम से पैमाना मेरा,
रोको न ,पी लेने दो ,

होश में हम आयें ना,
इतना तो पी लेने दो,

"रजनी"

मंगलवार, मई 04, 2010

रिश्ते बोलते हैं

रिश्ता एक ऐसी ईमारत है जो विश्वास की बुनियाद पर टिका है,कोई भी मंदिर या मस्जिद एक बार टूटकर दुबारा खड़ी की जा सकती है, पर रिश्ता की ईमारत विश्वास की नीव पर है इस विश्वास रूपी नीव के टूटने पर रिश्तों के महल पल में टूटकर बिखर जाते हैं, चूर हो जाते हैं,जीवन में हम अनेक रिश्तों से बंधें हैं,जिसमे कई रिश्तों को हम ता उम्र निभाने की सोंचते हैं बिना किसी कड़वाहट के,और उस रिश्ते को निभाने में कोई ऐसा मुकाम आ जाये जो रिश्ते को तार,तार कर रख दे तो जीवन का सफ़र बिल्कुल नीरस लगता है, टूट जाता है जीवन का सपना, हम जिस पर विश्वास कर अपने जीवन की डोर उसके हाथों में सौंप दें और विश्वास करनेवाला विश्वास तोड़ता नज़र आये, तो रिश्ते की कोई अहमियत नहीं रह जाती, अगर आप विश्वास करते हों तो विश्वास को सदा बनाये रखें, क्योंकि विश्वास की बुनियाद पर ही रिश्तों के महल टिके हैं.........जितना गहरा रिश्ता उतना ही गहरा विश्वास, और जब ये गहरे से विश्वास अचानक से टूटते हैं तो टुकड़े ही नहीं रिश्ते चूर हो जाते हैं, रिश्तों की गरिमा बनाये रखने के लिए अपने साथ जुड़े लोगों  परहमें  विश्वास बनाये रखना चाहिए और विश्वास को टूटने नहीं देना चाहिए........................................


रिश्ते 

कांच के बने होते हैं रिश्ते ,
जो ठोकर लगते ही टूट जाते हैं,
एक झटका ही काफी है,
इनके चूर होने में,
बिखर कर दूर हो जाते हैं,
टूटने में तो ये पल भी न लेते हैं,
पर बिखर कर जुड़ने में,
सरे उम्र छोटे पड़ जाते हैं,
एक नाजुक सी डोरी है रिश्ता,
जो मोम से भी कच्ची  है,
विश्वास का जो टूटे दामन,
तो पिघलने में देर नहीं लगती,
एक चिंगारी ही काफी है ,
रिश्तों को जलाने के लिए,
बड़े ही इम्तिहानों से गुजरना पड़ता है,
रिश्तों को निभाने के लिए,
कच्ची रिश्तों की  डोरी ,
कभी टूटने न पाए,
जो टूटे भी  तो जुडने में ,
 गांठ दे जाये ,
हर रिश्तों को तौलती परखती है रिश्ते,
बस विश्वास की जुबां ही बोलती है रिश्ते,
संभल कर रखना रिश्तों को,
क्योंकि,
जितनी ये नाजुक है,
हर मोड़ पे झुकती है,
पर जब टूट जाये,
तो बड़ी ही चुभती है,
टूटने में तो ये पल भी न लें,
पर जुडने में ये बरसों लेते हैं,
कांच के बने होते हैं रिश्ते,
जो ठोकर लगते ही टूट जाते हैं,
एक झटका ही काफी है,
इनके चूर होने में,
बिखर कर दूर हो जाते हैं |

"रजनी"

रविवार, मई 02, 2010

मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा.



मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुमे हो जायेगा,
दीवारों से टकराओगे जब इश्क तुमे हो जायेगा ,
हर बात गवारा करलोगे मन्नत भी माँगा करलोगे,
ताबिजें भी बंध्वाओगे जब इश्क तुमे हो जायेगा,
तन्हाई के झूले झूलोगे और बात पुरानी भूलोगे
आईने से घबराओगे जब इश्क तुमे हो जायेगा,
जब सूरज भी खो जायेगा और चाँद कहीं सो जायेगा,
तुम भी घर देर से आओगे जब इश्क तुमे हो जायेगा,
जब बेचैनी बढ़ जाएगी और याद किसी की आएगी ,
तुम मेरी ग़ज़लें गाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा.

किसी ने  बहुत अच्छा  लिखा  है  इश्क  का   पहला  पहलू  दूसरा  पहलू मै   देने  की कोशिश कर रही उपरोक्त ग़ज़ल किसी के द्वारा मुझे मिला है जिसे मै अपने कुछ और सब्दों से सजा रही.......

कुछ पंक्तियाँ मेरो ओर से....

मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा,
बैठे तन्हा मुस्काओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा,
जगकर सपने बुनोगे हर गम को भूलोगे,
मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा,
बिन श्रृंगार सज जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा,
बेचैनी भूल जाओगे जब एक चाँद सा चेहरा मुस्काएगा,
पतझड़ को भी सावन पाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा,
भूख नींद भूल जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा,
मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा.

"रजनी"

मजदूर हूँ अपनी मजबूरी बोल रहा हूँ

आज मजदूर दिवस पर एक रचना मजदूर की मज़बूरी पर ...........

आज    दिल  का    दर्द    घोल    रहा   हूँ,
मज़दूर  हूँ अपनी मजबूरी  बोल  रहा   हूँ |

ग़रीबी      मेरा     पीछा   नहीं       छोड़ती,
 क़र्ज़    को   कांधे पर   लादे   डोळ  रहा हूँ |

पसीने   से तर -ब -तर   बीत   रहा   है  दिन,
रात, पेट  भरने को नमक- पानी  घोल रहा हूँ |

आज    दिल     का   दर्द     घोल     रहा   हूँ,
मज़दूर    हूँ   अपनी    मजबूरी  बोल  रहा हूँ |

बुनियाद   रखता    हूँ  सपनों    का   हर  बार,
टूटे    सपनों   के    ज़ख्म   तौल    रहा     हूँ |

मज़दूरी      का   बोनस     बस      सपना    है,
सपनों   से    ही   सारे   अरमान  मोल रहा हूँ|

आज    दिल   का    दर्द     घोल      रहा    हूँ
मज़दूर     हूँ    अपनी    मजबूरी  बोल रहा हूँ |

"रजनी"