"कहते हैं लोग महबूब सनम को,
बदल गयी तुम्हारी नज़रे,
पर ये समझ नहीं पाते,
वो भी तड़पा होगा उसी तरह ,
खुद को बदलने में,
जैसे आत्मा तड़पती है,
तन से निकलने में."
-"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
सोमवार, सितंबर 13, 2010
वो भी तड़पा होगा उसी तरह खुद को बदलने में
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
5 comments:
रजनी जी बहुत बढ़िया लिखा है
wah madam,
very nice bas aap aise hi likhte raho..............
regards
shailendra verma
(jo ghar phoonke aapna......)
sukriya shailendra ji .........sneh bana rahe
wah .....di,
very nice
sanajay sukriya didi ki or se bhai ko bahut 2
एक टिप्पणी भेजें