सोमवार, मार्च 25, 2013

अब आग पर चलने जैसा, हो गया है चौराहा,

ख़ुदा  कैसा   लिखा  मुकद्दर   ,  क्या   रंजिश   निकाली ?
जिसे  भी     अपना   समझा , बदले   में   पाया    गाली  |

किस   बात   का   अचम्भा   किस   बात   का  है  झगड़ा,
स्वीस  बैंक  भर  उनके,     है    दामन    अपना    खाली |


क्योंकर वो  सुनेंगे  शोर   तेरे ,  हों   जिसके हाथ  सेंसर ?
कहीं   पे   बदनाम   मुन्नी   , कहीं  हुई     शीला  कहानी  |


अब   आग   पर  चलने   जैसा,    हो  गया     है   चौराहा,
मौवालियों  को दिखें  हर  आती-जाती   कलियाँ    साली |


कई  सराफ़त के पुतलों  के  घरों  में , आ   गया   बवंडर ,
एक  बेवा  ने  अपनी  मर्ज़ी    से   घर   क्या    बसा   ली  |

वो   मासूम   कली  रोकर ,पकड़ कर   पांव   उसके  बोली,
बाबा ब्याह  ना   कराना ,अभी  तो  मेरी  उमरिया    बाली |

 "रजनी मल्होत्रा नैय्यर "