रविवार, मार्च 25, 2012

कौन सा ऐनक लगा लूँ मै

कौन सा ऐनक लगा लूँ मै,
जिससे ढँक जाये
तैरती हुई नमी आँखों की,
तुम तो आसानी से छुपा लेती हो
कई राज़,
अपने गर्भ में,
मचलते हैं कभी
लावा बनकर
जब जज्बात अन्दर,
तोड़ने को व्याकुल होकर
पाकर कमजोर सतह को,
समेट लेती हो
बड़े अनूठे अंदाज़ में,
जिसे बंजर के नाम से
पुकारते है कभी-कभी लोग,
कौन जाने,कौन समझे
जब सम्पूर्ण तरलता छा जाएगी,
तो होगा ना सृष्टि का विनाश,
तुमसे ही तो सीखा है ,
ऐ धरा ?
प्रयत्न भी है,
न तोड़कर बाहर आ जाये,
मन के उदगार का सोता,
और ले ले कोई रूप
जलते हुए ज्वालामुखी का,
या फिर लहरें हिलोर लेते,
न बदल जाएँ तूफान में,
नहीं होना चाहिए
रिश्तों के भूमि का
आच्छादन,
जिससे रिश्ते की भूमि
हो जाये बंजर,शुष्क,
डरती हूँ तरलता से भी,
क्योंकि,कमजोर नींव
तरलता पाकर
गिर जाती है|
पहना दो कोई ऐनक
मुझे भी,
जिसमे न दिख पाए
आर-पार,
शुष्क है निगाह
कि वहां नमी है |
"रजनी"
******************

शुक्रवार, मार्च 16, 2012

नहीं मिलती कहीं राहत जहाँ में , ग़म के मारे को

मेरी तबीयत भी मिलती है नदिया के पानी से,
जो पल में बदल देती है अपने धारे को |

इस रास्ते मैंने गुज़ारे कई सफ़र तन्हा ,
मगर दिल ढून्ढ़ता है आज किसी सहारे को |

मिटा न दे लहर ,किनारे पर नाम लिखा तेरा
छिपा दिया पत्थर से, उस दरिया के किनारे को |

डगमगाते क़दम को जिससे मिल गयी मंजिल,
कैसे भूल जाये कोई उस राह के नज़ारे को |

मिले बातों से तस्कीन , कुछ पल भला "रजनी",
नहीं मिलती कहीं राहत जहाँ में , ग़म के मारे को |

--
रजनी मल्होत्रा नैय्यर

बुधवार, मार्च 07, 2012

इस बार होली में

 दिल  का टुकड़ा , रहा बरस भर घर से  बाहर
माँ  चूमे  मुखड़ा , घर  बेटा आया होली   में |

मेहँदी   छूटने  से पहले  चला गया  परदेश   जो
बिछड़ी उस विरहन से मिलने , आया  होली   में |

जिस बेटी की हुई विदाई इसी माह  के अन्दर,
पलकें भींगी राह तकेगी, इस बार   होली  में |

कल तक  रंजिश   थी  जिसको  जिस किसी  से ,
मिलकर  साथ  में ,  धो  डालो  रंजिश होली  में |

सूना है "रजनी" वो छोड़कर  फिरसे   चला जायेगा ,
जो  रंग कभी ना जायेगा,   डालो इस बार  होली में |




शुक्रवार, मार्च 02, 2012

कोख के चिराग़ को

हर बात ,
घुमती रही उसके ज़ेहन में
सारी रात,
कहीं कल का सवेरा
न बुझा दे,
मेरी कोख के चिराग़ को
अगर फिर से कट गयी
मेरे कोख में बेटी |

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"