शनिवार, मार्च 12, 2011

कर्म भाग्य बनाता है. बेटों का भी और बेटियों का भी.

एक वक़्त था
जब मेरे जन्म पर
तुमने कहा था 
कुल्क्छिनी
आते ही
भाई को खा गयी |
 माँ तेरी  ये बात 
मेरे बाल मन
में घर कर  गयी
मेरा बाल मन रहने लगा
अपराध बोध से ग्रस्त 
पलने लगे कुछ विचार , 
क्या करूँ ऐसा ?
जिससे तेरे मन से
मिटा सकूँ मैं 
वो विचार 
 कम कर सकूँ
तुम्हारे
मन के अवसाद को |
वक़्त गुजरते गए
ज़ख्म भी भरते गए
फिर आया
एक ऐसा वक़्त
जब तुमने ही कहा
बेटियां कहाँ पीछे हैं
बेटों से
वो तो दोनों कुलों  का
मान बढाती   हैं ।
माँ 
शायद तुम्हें  भी
अहसास हो गया
क़ि जन्म नहीं
कर्म भाग्य बनाता है 
बेटों का भी,
और बेटियों का भी ।
   
 " रजनी नैय्यर मल्होत्रा "