दीवानगी भी मेरी अब,
हद पार कर गयी है,
मै इसके हर एक हद से,
गुजर रही हूँ,
तेरी एक मुस्कान के लिए,
मै पल,पल मर रही हूँ,
चैन छिन गया है दिल का मेरा,
अब तो उस टूटे हुए,
आईने की तरह बिखर रही हूँ,
सांसे रुकी पड़ी है जैसे,
बड़े उहापोह से गुजर रही हूँ,
कैसा सुकून है फिर भी,
इस तराने में,
तू आईना बन गया है,
मेरे रूप का,
तुझे देख के मैं सवंर रही हूँ,
सांसे रुकी पड़ी है जैसे,
बड़े उहापोह से गुजर रही हूँ|
शनिवार, दिसंबर 19, 2009
तू आईना बन गया है, मेरे रूप का,
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 19.12.09 5 comments
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शुक्रवार, दिसंबर 18, 2009
प्यार जिसे मिल जाए,
कहते हैं ,
प्यार जिसे ,
मिल जाए,
उसके,
जिन्दगी में,
गूंजती ,
शहनाई है,
और,
जिसके ,
हिस्से में,
ना आई,
मुहब्बत ,
उसकी ,
जिन्दगी में तो ,
दर्द,
जुदाई,
और,
तन्हाई है.
"rajni"
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 18.12.09 0 comments
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गुरुवार, दिसंबर 17, 2009
मधुशाला भी छोटा पड़ जाये, इतना मद है उनके आँखों में,
मधुशाला भी फीका पड़ जाये,
इतना मद है उसकी आँखों में,
हर मन को चंचल कर जाये ,
ऐसी खुशबू है उनकी सांसों में,
मिसरी भी फीकी पड़ जाए,
ऐसी मधुरता उनकी बातों में,
दूर होकर भी वो पास है मेरे,
इस तरह बसा है मेरी यादों मैं|
हर शह को मात दे जाये ,
ऐसी अदा है उनकी चालों में |
मधुशाला भी फीका पड़ जाये,
इतना मद है उसकी आँखों में.
"रजनी"
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 17.12.09 2 comments
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मंगलवार, दिसंबर 15, 2009
यूँ किस्त दर किस्त ना मार दे
KUCHH SHER MERI CREATION KE........
दरिया भरा है सामने पानी से,
पर दिल बेताब है,
तेरे आँखों के सागर में डूब जाने के लिए|
****************************
सागर में रहने का डर हमें नहीं,
कस्ती लिए फिरते हैं हम तो,
तूफ़ान के इंतज़ार में|
*****************
क्या खूब मिला है सिला इंतज़ार का,
वो आते हैं हमसे मिलने,
मेरे जाने के बाद|
*****************
जब हम नहीं होते हैं,वो चाँद मुस्कुराता है,
हमारे आते ही सामने,
बादल की आगोश में छूप जाता है|
**********************
बहुत जी लिया तेरे शर्तो पर,
अब तो ये क़र्ज़ तू उतार दे,
दे दे सजा कोई ऐसी,
यूँ किस्त दर किस्त ना मार दे|
************************
BY------ RAJNI NAYYAR MALHOTRA 9:18PM
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 15.12.09 4 comments
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हर राह यदि बिन मोड़ गुजर जाए
हर राह में ,
यदि फूल बिछे हों,
हर राह यदि ,
बिन मोड़ ,
गुजर जाए,
अँधेरा ना हो तो,
रौशनी कि,
जरुरत को ,
कोई ना,
जान पाए,
ज़िन्दगी भी,
एक राह है,
जो फूल के,
संग शूल,
अँधेरे के संग,
प्रकाश की,
चलते कदम को ,
एहसास कराए.
"रजनी"
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 15.12.09 2 comments
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शुक्रवार, दिसंबर 11, 2009
एक चुटकी सिंदूर के बदले, उसे साँसे गिरवी दे देती है,
मेरे मन में काफी सालों से एक द्वंद चल रहा था,समाज में नारी के स्थान को लेकर,
मन कुछ कड़वाहट से भरा रहा,आज काफी सोंचते हुए एक रचना लिख रही उनकी कुछ (नारी)
की बेबसी पर जो .........ममता,त्याग,वात्सल्य ,विवशता संस्कार,कर्तव्य, एक चुटकी सिंदूर ........ और जीवनपर्यंत रिश्तों की जंजीर में बंधकर, अपनी हर धड़कन चाहे इच्छा से,चाहे इच्छा के बिरुद्ध बंधक रख देती है..जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त वह बस रिस्तों को निभाने में ही रह जाती है,विवाह के बाद विवाह के पूर्व खुलकर अपनी साँसें भी नहीं ले पाती,पर विवाह के बाद नए रिस्तों में बंध कर वो तो अपना अस्तित्व ही खो देती है, वो खुद को गिरवी रख देती है,अपने ही अर्धांगिनी होने का मतलब भी खो देती है.......... आशा है मेरे विचारों
से आपलोग सहमत हों.......
मेरी एक कोशिश है (उन नारियों के लिए जो खुद को बेबस बना कर रखी हैं ) उनके लिए ... बंधन में बंधो,पर खुद को जक्ड़ो नहीं..........
अर्धांगिनी का मतलब समझ जा,
तेरी खुद की सांसों पर भी,
तुम्हारा अधिकार है,
एक चुटकी सिंदूर के बदले,
उसे साँसे गिरवी दे देती है,
लहू से अपने,सींचे आँगन जिसका,
खुशियाँ अपनी सूद में उसे देती है,
त्याग और ममता की मूरत बनकर,
कब तक और पिसोगी तुम,
आँखों में आँसू रहेगा कबतक ?
कबतक होंठों पर झूठी ख़ुशी होगी ?
कब तक रहोगी सहनशील ?
कब तक तेरी बेबसी होगी ?
त्याग ,दया,ममता, में बहकर,
अबतलक पिसती आई,
जिस सम्मान की हक़दार हो,
अपनी खता से ही ना ले पाई,
शर्म, हया तेरा गहना है,
बस आँखों में ही रहे तो काफी है,
खुद को बेबस जानकार,
ना दबा दे आरजू सारी,
पहचान ले खुद को,
तेरा ही रूप रही दुर्गा काली,
मांगने से नहीं मिलता,
छिनना पड़ता अधिकार है,
अर्धांगिनी का मतलब समझ जा,
तेरी खुद की सांसों पर भी,
तुम्हारा अधिकार है,
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 11.12.09 17 comments
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गुरुवार, दिसंबर 10, 2009
हिन्दुस्तानी एकेडेमी: कुमार विश्वास की लुटायी मस्ती में झूमते रहे श्रोता...
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 10.12.09 0 comments
बुधवार, दिसंबर 09, 2009
मै तुझे बरसने का आधार नही दे पाऊँगी
मैं तुझे बरसने का आधार नहीं दे पाऊँगी,
चाहते हो जो खुशियों का संसार,
तुम्हें वो खुशियों का संसार नहीं दे पाऊँगी,
मै वो धरा नही जो बेसब्री से ,
करे बादल का इंतजार,
ये बावले बादल कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का आधार नही दे पाऊँगी,
पता है तेरे जिगर में मेरे लिए ,
अगाध छिपा अनुराग है,
पर मै तेरे अनुरोध को स्वीकार नहीं पाऊँगी,
क्योंकि मै वो धरा नही जो बेसब्री से ,
करे बादल का इंतजार,
ये बावले बादल कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का आधार नही दे पाऊँगी,
मै वो दीया हूँ जो जलती तो हूँ ,
पर तुम्हे रौशनी नही दे पाऊँगी,
मत कर खुद को बेकरार इतना,
तुझको मै करार नही दे पाऊँगी,
मै वो सरिता हूँ जो भरी तो हुई नीर से,
पर तेरे प्यास को बुझा नही पाऊँगी,
क्यों आंजना चाहते हो मुझे आँखों में ?
मै वो काजल हूँ,
जो आँखों को कजरारी कर,
शीतलता नही दे पाऊँगी,
मत कर खुद को बेकरार इतना,
तुझको मै करार नही दे पाऊँगी,
क्योंकि मै वो धरा नही जो बेसब्री से ,
करे बादल का इंतजार,
ये बावले बादल कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का आधार नही दे पाऊँगी,
सुमन से भरी बाग़ हूँ मै,पर
तेरे संसार को सुगन्धित नहीं कर पाऊँगी,
क्यों लिखना चाहते हो मुझको गीतों में ?
मै वो शब्द का जाल हूँ जो,
गीतों का माल नही बन पाऊँगी,
ये बावले बादल कहीं और बरस,
मै तुझे बरसने का आधार नही दे पाऊँगी,
चाहते हो जो खुशियों का संसार,
तुम्हें वो खुशियों का संसार नहीं दे पाऊँगी,
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 9.12.09 0 comments
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काँटों से आँचल छुड़ाना सीख लिया मैंने,
काँटों से आँचल छुड़ाना,
सीख लिया मैंने,
कदम डगमगाते थे,
लड़खड़ाते कदम ,
आसानी से,
आगे बढ़ाना,
सीख लिया मैंने,
तन्हा चलने लगे हैं,
कदम संभलने लगे हैं,
पथरीली राहों पर भी,
अब तो ,
हँस कर चलने लगे हैं,
वक़्त के साथ खुद को,
आजमाना ,
सीख लिया मैंने,
बात बात पर,
सागर छलकाने वाले,
कैसे,बन जाते हैं,
पत्थर,सीख लिया मैंने,
कड़वे बोल भी ,बन जाते हैं ग़ज़ल,
गजल बनाना सीख लिया मैंने,
अग्न में खुद को मोम सा ,
जलाना सीख लिया मैंने,
तन्हा चलने लगे हैं,
कदम संभलने लगे हैं,
पथरीली राहों पर भी,
अब तो ,
हँस कर चलने लगे हैं,
सागर के तेज़ धारे से,
कस्ती बचाना,
सीख लिया मैंने,
मौन रह कर भी सबकुछ ,
कह जाना सीख लिया मैंने,
गम के सागर में भी रहकर,
मुस्कुराना सीख लिया मैंने,
तन्हा चलने लगे हैं,
कदम संभलने लगे हैं,
पथरीली राहों पर भी ,
अब तो,
हँसकर चलने लगे हैं.
"रजनी "
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 9.12.09 0 comments
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फिर खामोश हैं ये निगाहें
फिर खामोश हैं ये निगाहें,
ये दिल फिर बेकरार है,
जो रहते हैं हर पल दिल में,
फिर क्यों उनका इंतजार है |
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 9.12.09 0 comments
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