एक सुर्ख़ गुलाब देकर
कर देते हैं लोग
अपनी भावनाओं का इज़हार।
यदि
यही है
अपने प्रीत को बयाँ करना
तो कई बार बांधे मैंने
यही है
अपने प्रीत को बयाँ करना
तो कई बार बांधे मैंने
ख़ुद ही अपने
जुड़े में सुर्ख़ गुलाब |
और , तुम मुस्कुरा कर
अपने हाथों से
छू कर गुलाब को
कह देते एक बार ।
और , तुम मुस्कुरा कर
अपने हाथों से
छू कर गुलाब को
कह देते एक बार ।
हर बार
कितनी फबती है
मेरे गौर वर्ण पर,
मेरे गौर वर्ण पर,
काले घुंघराले
बालों में
यह लाल गुलाब !
मै हर बार शरमा कर
यह लाल गुलाब !
मै हर बार शरमा कर
रह जाती ।
शायद ,
कभी तो समझ पाओगे
मेरे अनकहे अहसास को |
क्या ये गुलाब
जिसे ,
प्रेम का प्रतीक कहते आये हैं लोग़
वो रह गया
मात्र एक
श्रृंगार बन कर .
कभी देवताओं के सर का,
कभी रमणी के ?
शायद ,
कभी तो समझ पाओगे
मेरे अनकहे अहसास को |
क्या ये गुलाब
जिसे ,
प्रेम का प्रतीक कहते आये हैं लोग़
वो रह गया
मात्र एक
श्रृंगार बन कर .
कभी देवताओं के सर का,
कभी रमणी के ?
या मेरे भी प्रेम को
अनकहे एहसास को समझा
पाएगा उन्हें ?
मेरे प्रेम का प्रतीक
बनकर ।
रजनी नैय्यर मल्होत्रा
14 फरवरी 2011 (यादें)
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