एक सुर्ख़ गुलाब देकर
कर देते हैं लोग
अपनी भावनाओं का इज़हार।
यही है
अपने प्रीत को बयाँ करना
तो कई बार बांधे मैंने
और , तुम मुस्कुरा कर
अपने हाथों से
छू कर गुलाब को
कह देते एक बार ।
मेरे गौर वर्ण पर,
यह लाल गुलाब !
मै हर बार शरमा कर
शायद ,
कभी तो समझ पाओगे
मेरे अनकहे अहसास को |
क्या ये गुलाब
जिसे ,
प्रेम का प्रतीक कहते आये हैं लोग़
वो रह गया
मात्र एक
श्रृंगार बन कर .
कभी देवताओं के सर का,
कभी रमणी के ?