ग़ज़ल
सब तरफ है छाई मंदी आजकल व्यापार में
हैं नहीं पहले सी अब तो रौनकें बाजार में
कुछ जरा बदलाव आए , दाम शेयर के गिरें
ढूँढने लग जाते हैं जी ऐब हम सरकार में
आप भी कुछ हल निकालें बात बन ही जाएगी
क्यों भड़क कर दोष देते वक्त को बेकार में
चाटुकारी, बेईमानी मिलती बेग़ैरत में है
दोष ये होते नहीं हैं आदमी ख़ुद्दार में
हर तरफ होगा उजाला होगी रोशन रात ये
क़ुमक़ुमे यूँ जल उठेंगे नूर के त्योहार में
डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर
बोकारो थर्मल,झारखंड
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