ग़ज़ल
मंज़िल से अब दूर नहीं हूँ
थोड़ा भी मग़रूर नहीं हूँ
गिर जाऊँ समझौते कर लूँ
इतना भी मजबूर नहीं हूँ
दूर हुआ तू मुझसे फिर भी
तेरे ग़म से चूर नहीं हूँ
क्यों बदलूं मैं तेवर अपने
मौसम या दस्तूर नहीं हूँ
है मेरी पहचान जहाँ में
पर तुझ सा मशहूर नहीं हूँ
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