रफ़्ता रफ़्ता ख़ुदकशी का मज़ा हमसे पूछिये
वफ़ा के बदले मिलती है जफा , हमसे पूछिये.
हर साँस में बस जाये जो धड़कन बन कर
उसे ताउम्र न भूल पाने की ख़ता हमसे पूछिये.
एक बार में कैसे पी जाते हैं जाम लोग
घूंट -घूंट कर पीने का मज़ा हमसे पूछिये.
दोस्त भी दोस्ती नहीं निभाते हैं आजकल
दुश्मनों से भी निभाने की अदा हमसे पूछिये.
क़ातिलों को दे दी रिहाई , उम्र क़ैद ख़ुद को
मेरी ये सादगी लिल्लाह हमसे पूछिये.
वफ़ा के बदले मिलती है जफा , हमसे पूछिये.
हर साँस में बस जाये जो धड़कन बन कर
उसे ताउम्र न भूल पाने की ख़ता हमसे पूछिये.
एक बार में कैसे पी जाते हैं जाम लोग
घूंट -घूंट कर पीने का मज़ा हमसे पूछिये.
दोस्त भी दोस्ती नहीं निभाते हैं आजकल
दुश्मनों से भी निभाने की अदा हमसे पूछिये.
क़ातिलों को दे दी रिहाई , उम्र क़ैद ख़ुद को
मेरी ये सादगी लिल्लाह हमसे पूछिये.
8 comments:
hame ye bhi puchhna tha,kaise itni pyari raachnayen likhti hain aap:)
सुन्दर ग़ज़ल...
सादर.
बहुत खूब! हरेक शेर बहुत उम्दा...
दोस्त भी दोस्ती नहीं निभाते हैं आजकल
दुश्मनों से भी निभाने की अदा हमसे पूछिए।
बहुत खूब, बहुत खूब..!
शानदार ग़ज़ल !
hardik aabhar aapsabhi ko mai out of station hone ke karan nahi aa saki......
शब्द-शब्द से पीड़ा निकले,
जिसपर बीते वह ही जाने।
इसकी दवा दर्द ही होगी,
अब तक हम ऐसा ही माने।
मेरे दिल में उतर गई यह,
इस रचना को हम सम्माने।।
आपकी दुश्मनों से निभाने की अदा बहुत पसंद आई,रजनी जी.
आपकी काव्य प्रतिभा कमाल की है जी.
आभार.
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