मेरी ज़िन्दगी की हसीं शाम कर दो
अपनी एक ग़ज़ल मेरे नाम कर दो.
उठते नहीं शर्म-ओ हया से चश्म
या रब,मेरे जज़्बात लब-ए-बाम कर दो.
बहुत फासले हैं दरमियाँ मेरे तुम्हारे
सदा के लिए क़िस्सा तमाम कर दो.
कब तक छुपाये रखोगे गोशा-ए-दिल में
राज़-ए-दिल आज चर्चा-ए-आम कर दो.
तग्ज्जुल कहाँ रह गयी आज ग़ज़लों में,
"रजनी " तुम्हीं यह नेक काम कर दो .
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
अपनी एक ग़ज़ल मेरे नाम कर दो.
उठते नहीं शर्म-ओ हया से चश्म
या रब,मेरे जज़्बात लब-ए-बाम कर दो.
बहुत फासले हैं दरमियाँ मेरे तुम्हारे
सदा के लिए क़िस्सा तमाम कर दो.
कब तक छुपाये रखोगे गोशा-ए-दिल में
राज़-ए-दिल आज चर्चा-ए-आम कर दो.
तग्ज्जुल कहाँ रह गयी आज ग़ज़लों में,
"रजनी " तुम्हीं यह नेक काम कर दो .
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "
9 comments:
Bahut Pyari Gazal... Shabd chun chun kar moti jaise..bhav har she'e me bahut khoob..
behad khoobsurat...
बहुत ही बेहतरीन गज़ल ।
मेरी नई कविता देखें । और ब्लॉग अच्छा लगे तो जरुर फोलो करें ।
मेरी कविता:मुस्कुराहट तेरी
बेहतरीन ग़ज़ल .अपना हरेक अश आर मेरे नाम कर दो .
aap sabhi ko mera hardik aabhar.......
bahut badhiyaa gazal...
ग़ज़ल की खूबसूरती ने मन को प्रभावित किया।
शुभकामनाएं।
वाह! बहुत शानदार प्रस्तुति है.
मेरी उर्दू जरा कमजोर है.
पर गजल पढ़ने से ऐसा लगता ही नही.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार,रजनी जी.
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