गुरुवार, जनवरी 05, 2012

रफ़्ता रफ़्ता ख़ुदकशी का मज़ा हमसे पूछिये

रफ़्ता रफ़्ता ख़ुदकशी का   मज़ा हमसे पूछिये
वफ़ा के बदले  मिलती  है जफा , हमसे पूछिये.

 हर  साँस में  बस जाये  जो धड़कन  बन  कर
उसे  ताउम्र न भूल पाने की ख़ता हमसे पूछिये.


एक  बार   में   कैसे   पी जाते  हैं जाम  लोग
घूंट -घूंट  कर  पीने  का  मज़ा  हमसे  पूछिये.


दोस्त  भी दोस्ती नहीं  निभाते  हैं  आजकल
दुश्मनों से भी निभाने की अदा  हमसे पूछिये.

क़ातिलों को दे  दी रिहाई ,  उम्र क़ैद ख़ुद को
मेरी ये     सादगी  लिल्लाह   हमसे  पूछिये.














8 comments:

विशाल ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

hame ye bhi puchhna tha,kaise itni pyari raachnayen likhti hain aap:)

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

सुन्दर ग़ज़ल...
सादर.

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत खूब! हरेक शेर बहुत उम्दा...

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

दोस्त भी दोस्ती नहीं निभाते हैं आजकल
दुश्मनों से भी निभाने की अदा हमसे पूछिए।

बहुत खूब, बहुत खूब..!
शानदार ग़ज़ल !

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

hardik aabhar aapsabhi ko mai out of station hone ke karan nahi aa saki......

dinesh aggarwal ने कहा…

शब्द-शब्द से पीड़ा निकले,
जिसपर बीते वह ही जाने।
इसकी दवा दर्द ही होगी,
अब तक हम ऐसा ही माने।
मेरे दिल में उतर गई यह,
इस रचना को हम सम्माने।।

Rakesh Kumar ने कहा…

आपकी दुश्मनों से निभाने की अदा बहुत पसंद आई,रजनी जी.

आपकी काव्य प्रतिभा कमाल की है जी.

आभार.