जिस्म से हैं शहरों में बूढ़े जान अभी तक गाँव में.
फ़ैल गया नफ़रत का ज़हर शहर के धूप-छाँव में,
प्रेम का पौधा फला खड़ा है अभी तक गाँव में .
ईमेल और चैट पर होती है शहरी गुफ़्तगू,
डाकिये की राह देखें लोग अभी तक गाँव में.
कट रहे पेड़ शहरों में अंधी भौतिक दौड़ में,
पूजते है लोग नीम ,पीपल अभी तक गाँव में.
उफ़न -उफ़न आती थी एक पगली नदी की धारा,
बरसात में सबको डराती है अभी तक गाँव में.
नए जमाने को पसंद डिस्को, पब, चाईनीज़, थाई,
पुवों-पकवानों की महक आती है अभी तक गावं में.
दिन ढले तक सोते हैं ये मगरिब को ढोने वाले,
तड़के ही उठ जाते हैं लोग अभी तक गाँव में.
रजनी मल्होत्रा नैय्यर