बाक़ी है हर तहजीब पुरानी अभी तक गाँव में,
जिस्म से हैं शहरों में बूढ़े जान अभी तक गाँव में.
फ़ैल गया नफ़रत का ज़हर शहर के धूप-छाँव में,
प्रेम का पौधा फला खड़ा है अभी तक गाँव में .
ईमेल और चैट पर होती है शहरी गुफ़्तगू,
डाकिये की राह देखें लोग अभी तक गाँव में.
कट रहे पेड़ शहरों में अंधी भौतिक दौड़ में,
पूजते है लोग नीम ,पीपल अभी तक गाँव में.
उफ़न -उफ़न आती थी एक पगली नदी की धारा,
बरसात में सबको डराती है अभी तक गाँव में.
नए जमाने को पसंद डिस्को, पब, चाईनीज़, थाई,
पुवों-पकवानों की महक आती है अभी तक गावं में.
दिन ढले तक सोते हैं ये मगरिब को ढोने वाले,
तड़के ही उठ जाते हैं लोग अभी तक गाँव में.
रजनी मल्होत्रा नैय्यर
जिस्म से हैं शहरों में बूढ़े जान अभी तक गाँव में.
फ़ैल गया नफ़रत का ज़हर शहर के धूप-छाँव में,
प्रेम का पौधा फला खड़ा है अभी तक गाँव में .
ईमेल और चैट पर होती है शहरी गुफ़्तगू,
डाकिये की राह देखें लोग अभी तक गाँव में.
कट रहे पेड़ शहरों में अंधी भौतिक दौड़ में,
पूजते है लोग नीम ,पीपल अभी तक गाँव में.
उफ़न -उफ़न आती थी एक पगली नदी की धारा,
बरसात में सबको डराती है अभी तक गाँव में.
नए जमाने को पसंद डिस्को, पब, चाईनीज़, थाई,
पुवों-पकवानों की महक आती है अभी तक गावं में.
दिन ढले तक सोते हैं ये मगरिब को ढोने वाले,
तड़के ही उठ जाते हैं लोग अभी तक गाँव में.
रजनी मल्होत्रा नैय्यर
9 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 30-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
गहन भावाभिव्यक्ति..... बहुत कुछ सहेजे हैं आज भी गाँव ....
वाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
mai aabhari hun aap sabhi ke aane se...
बहुत सुन्दर, सार्थक प्रस्तुति।
Piyush ji......hardik aabhar.......
sangeeta didi bahut aabhar........aaj hi dekha maine nayi purani halchal.........
बहुत खूबसूरत ये चित्रण किया आपने गाँव का,
याद दिलाया इस कविता ने मुझको अपने गाँव का।
नेता,कुत्ता और वेश्या
सच गाँव का क्या कहना.... बहुत ही सुंदर तस्वीर आपने खींची है गाँव की.
पुरवईया : आपन देश के बयार- कलेंडर
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