जामे इश्क तुने ,
कभी पिलाया नहीं,
किसी पैमाने और को,
हमने उठाया नहीं,
यूँ तो मिले थे ,
तुमसे भी बढ़कर
कई और,
सिवा तेरे,
दिल ने मेरे,
दूसरे को अपनाया नहीं.
"rjni"
बुधवार, दिसंबर 09, 2009
सिवा तेरे दिल ने मेरे दूसरे को अपनाया नहीं|
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 9.12.09 5 comments
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ये तो मेरी अदा है, दिल की दर्द छुपाने की
हम हंसते हैं तो उन्हें लगता है ,
हमें आदत है मुस्कुराने की,
नादाँ इतना भी नहीं समझ पाते,
ये तो मेरी अदा है,
दिल की दर्द छुपाने की|
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 9.12.09 7 comments
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अपना सबकुछ लगाये बैठे हैं दाव पर
बिन खेले ही,
जीत कर ,
ले गए वो,
हमसे,
मुहब्बत,
की बाज़ी,
अब तक ,
हम ,
लगाये बैठे हैं,अपना ,
सब कुछ ,
दांव पर.
"रजनी"
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 9.12.09 2 comments
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सोमवार, दिसंबर 07, 2009
आँखें नींद से बोझिल हैं, देखो कहीं मै ना सो जाऊं
ये रचना हर संघर्षरत इन्सान के लिए.................
आँखें नींद से बोझिल हैं,
देखो कहीं मै ना सो जाऊं,
मैं दूर पथ की पथिक हूँ,
भटकन में पथ ना खो जाऊं,
कदम चलते चलते थकने लगे,
गहरी नींद में न सो जाऊं,
मुझे सोना नहीं,कुछ पाना है,
बहुत दूर है मंजिल,पर जाना है,
विजय का बिगुल बज जाएगा,
असंभव भी संभव हो जायेगा,
तन थक जाए,पर मन थक ना पायेगा,
तब हार भी बनेगी जीत की पताका,
भरे होंगे राह मुश्किल से,
पर अडिग रहना होगा अपने प्रण से,
निराशा कभी हाथ आएगी,
कभी हर्ष मन को महकाएगी,
रुकते रुकते से लगेंगे कदम,
कभी खुद आगे बढ जायेगे,
मुझे सोना नहीं कुछ पाना है,
बहुत दूर है मंजिल,पर जाना है,
मै क्या हूँ मेरी पहचान बता देना,
सोने लगूं तो जगा देना,
आँखें नींद से बोझिल हैं,
देखो कहीं मै ना सो जाऊं|
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 7.12.09 2 comments
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रविवार, दिसंबर 06, 2009
वक़्त की आंधी ने हमें रेत बना दिया
वक़्त की आंधी ने हमें रेत बना दिया,
हम भी कभी चट्टान हुआ करते थे,
मौसम के रुख ने हमें मोम बना दिया,
हम भी कभी आग हुआ करते थे,
आज हिम सा शून्य नज़र आ रहे,
कभी हम भी थे रवि के तेज से,
एक झंझावत से गिर गयी पंखुडियां सारी,
बस शूल के ही डाली बन के रह गए,
हम भी कभी गुलाब से भरे गुलशन हुआ करते थे,
विवशता ने हमें सिन्धु सा शांत बना दिया,
हम भी कभी उफनती सरिता सी मादकता में चूर थे,
वो अपने ही क़दमों के निशान हैं,
जो कभी हिरनी सा चौकड़ियाँ भरा करते थे,
वक़्त की आंधी ने हमें रेत बना दिया,
हम भी कभी चट्टान हुआ करते थे|
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 6.12.09 4 comments
मेरे हमसफ़र हो जाए राह आसां
शुकून मिले इस दिल को,
जो तेरी गोद में ,
पनाह मिले,
तपती धूप में,
जलते हम,
तेरे प्यार कि जो ,
छांव मिले,
हो जाए आसरा,
गर दो घड़ी,
जो तेरे कंधो का,
सहारा मिले,
मेरे हमसफ़र,
हो जाए राह आसां,
जो जीवन में हमें,
तेरा साथ मिले.
"rajni"
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 6.12.09 0 comments
उन्हें क्या डूबाओगे जो लहरों में रहना जानते हैं
उन्हें क्या डूबाओगे ,
जो लहरों में रहना जानते हैं,
उन्हें क्या रुलाओगे ,
जो हरदम खुश रहना जानते हैं,
उन्हें क्या आजमाओगे ,
जो कसौटी में,
खरा उतरना जानते हैं,
उन्हें क्या पहचान सीखाओगे ,
जो हर धड़कन पहचानते हैं,
रोने वालों को हँसना सीखा दो,
तो रोनेवालों की हंसी ,
कुछ दूआ भी देगी,
भवंर में डूबने वालों को,
दे दो हाथों का सहारा,
बच जायेगी ज़िन्दगी ,
तो एक ज़िन्दगी संवरेगी
उन्हें क्या डूबाओगे ,
जो लहरों में रहना जानते हैं,
उन्हें क्या रुलाओगे ,
जो हरदम खुश रहना जानते हैं|
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 6.12.09 0 comments
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शनिवार, दिसंबर 05, 2009
सिसक रही है अपनी बेबसी पर आज की सीता
आज की सीता
सिसक रही है अपनी बेबसी पर आज की सीता,
हर रावण आज है अपनी मक्कारी से जीता,
कभी सीता ने एक तिनके से डराया था रावण को,
विश्व विजेता कहलानेवाला डर गया था उस तिनके को लांघन को,
थी शक्ति स्वरूपा, वो सति रूप अंशी,
तभी तो रोका न कर पाया रावण कुछ वैसा,
आज तो कदम कदम पर रावण खड़े हैं,
देखें अकेली अबला को तो पीछे पड़े हैं,
एक था रावण तो थी एक सीता,
पर आज तो एक सीता हजारों है रावण,
थर थर कांपती रह जाती पड़े जब सामन,
गिला करे अपनी तकदीर से जो तुने अबला बना दिया,
क्यों न अपनी शक्ति का एक अंश ही प्रदान किया,
शक्ति तुने औरत होकर खुद औरत को न समझा,
अपनी शक्ति का तू जो एक अंश ही देती,
रहती ना अबला ये लुटती न अपने लाज को,
जहाँ जरूरत पड़ जाती वो बन जाती चंडी काली,
हो पाता तेरा ये थोड़ा उपकार तो,
आज कर देती हर रावण का संहार वो,
जो नजरें उठाई,जो हाथ बडाई ,किसी ने अबला जान कर,
जानकर वो भी रह जाता उसकी शक्ति मान कर,
सिसक रही है अपनी बेबसी पर आज की सीता,
हर रावण आज है अपनी मक्कारी से जीता,
एक हैं दोनों रूप अलग है,
फिर क्यों एक शक्ति स्वरूपा कहलाती है,
एक अकेली अबला ही रह जाती है,
हे शक्ति क्यों तेरे आँखों के सामने,एक शक्ति लूट जाती है,
चाह कर भी वो अपना सर्वस्व बचा नहीं पाती है,
आकर इस दुनिया से रावण का संहार कर,या दे दे वो शक्ति,
अपना वो अंश प्रदान कर,
कर सके ये भी तेरी तरह महिषासुर का संहार,
कर ना पाए अबला के लाज पर कोई जान अबला वार,
सिसक रही है अपनी बेबसी पर आज की सीता,
हर रावण आज है अपनी मक्कारी से जीता,
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 5.12.09 0 comments
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ओ चैन लूटने वाले, मुझे थोड़ा तो करार दे|
जब इंतज़ार हद से गुज़र जाए तो कुछ इस तरह मन की भावनाएं होती हैं.......
ओ चैन लूटने वाले,
मुझे थोड़ा तो करार दे,
दे दे हाथों से अपने,
थोड़ा सा ज़हर,
यूँ तो हमें,
इंतज़ार के,
अग्न में जलाकर,
बेमौत ना मार दे,
हम तो हो गए बस,
यूँ ही कायल तुम्हारे,
नाम तुम्हारा आता है,
खुदा से पहले, होठों पे हमारे ,
जितने भी तेरे पास हैं,
तीर कमान में,
वो सारे,
मेरे जिगर में उतार दे,
उफ़ ना निकले,
होठों से हमारे,
बस इस अग्न से मुझे,
एक बार तो उबार दे,
यूँ तो हमें ,
इंतज़ार के,
अग्न में,जलाकर,
बेमौत ना मार दे,
कौन सी ,
खता है हमारी,
बस,
एक बार तो ,
इजहार दे,
हुक्म तेरा ,
मेरे सर आँखों पर,
क़दमों में तेरे,
मेरी जान वार दे,
ओ चैन लूटने वाले,
मुझे थोड़ा तो करार दे,
खो गया है चैन मेरा,
ज़िन्दगी बेहाल है,
कोई तो मुझे ,
ज़िन्दगी अपनी,
दो चार दिन को,
उधार दे,
ओ चैन लूटने वाले,
मुझे थोड़ा तो करार दे.
"रजनी"
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 5.12.09 2 comments
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शुक्रवार, दिसंबर 04, 2009
जिस माझी पर होता है ऐतबार
ना कर कस्ती को किनारे पर लाने की बात,
अक्सर जहाँ पानी कम हो,
वही पर कस्ती डूब जाती है,
जिस माझी पर होता है ऐतबार,
वो ही मझधार में छोड़ जाता है|
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 4.12.09 3 comments
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