अक्स अपना देखने को चाँद जब बेताब था
आइना बन आ गया दरिया तब उसके सामने
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आज यादों के दरीचे को खुला रहने दिया
साथ बीते पल सुहाने चलचित्र से आ गए
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मुहब्बत के लिए मख़्सूस है बारिश का मौसम ही
सजन आजा चला जाए न ये बरसात का मौसम
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नचाती है सभी को ज़िंदगी ये
तमाशाई बने सब देखते हैं
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तू दे कभी गुलाब मुझे इंतज़ार है
इज़हार मैं करूँगी तुझे इंतज़ार
"डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर"
बोकारो थर्मल झारखंड
3 comments:
मूल पोसेट दिखाएँ
सादर
उम्दा!
यशोदा अग्रवाल जी क्या कहना चाह रहीं
नहीं समझ आ रहा मुझे।
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