प्रेम गहरा हो , या आकर्षण ,
प्रेम , प्रेम ही होता है.....
चंचल मन को मिलन की तिश्नगी,
जीवन को दर्पण देता है|
तन,मन धन सर्वस्व न्योछावर ,
पथरीले राहों में मंजिल को संबल देता है|
दुःख-सुख के पलों में आलिंगन देता है
प्रेम गहरा हो , या आकर्षण ,
प्रेम , प्रेम ही होता है.....
अदभुत है इस प्रेम की रीत,
त्याग का दूजा नाम है प्रीत|
जहाँ त्याग नहीं हो प्यार में,
वो प्यार वफ़ा नहीं देता है |
प्रेम से सुगन्धित संसार है,
ये फूलोँ में काँटों का हार है|
त्याग,बलिदान,वफ़ा से ,
जुड़ा प्यार का नाता है|
सिर्फ प्रेम को पाना ही नहीं,
लूट जाना भी प्यार है|
संसार से जुड़ा हर रिश्ता प्रेम से गहराता है,
वो प्रेमी,प्रेमिका,भाई ,बहन, दोस्त,पिता - माता है |
प्रेम गहरा हो , या आकर्षण ,
प्रेम , प्रेम ही होता है.....
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
13 comments:
बहुत सुन्दर प्रेममय रचना ।
'तिश्नगी' सही है या 'तृष्णगी' एक बार देख लिजिए । मुझे भी कन्फ्युजन हो रहा है ।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बेहतरीन रचना।
सादर
bahut sunderrachna............
सुंदर , प्रेम तो प्रेम ही होता है....
सच प्रेम सिर्फ प्रेम जानता है और आपस में प्रेम सिखाता है..
..प्रेम से सुन्दर अभिव्यक्ति...
बहुत खूब रजनी जी - प्रेम की अलौकिकता को दर्शाती आपकी पंक्तियाँ जब पढ़ रहा था तो बहुत पहले के खुद लिखी की ये पंक्तियाँ याद आ गयीं -
मिलन में नैन सजल होते हैं, विरह में जलती आग।
प्रियतम! प्रेम है दीपक राग।।
पूरी रचना इस लिंक पर है -- http://manoramsuman.blogspot.in/2009/06/blog-post_09.html
मेरी हार्दिक शुभकामनायें
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
बहुत सुन्दर प्रेम पगी रचना....
बेहतरीन प्रस्तुति....
wah....bahot sunder.
सुन्दर प्रेम पगी रचना.
प्रेम की काफी यथार्थपरक प्रतुति की है अपने
बहुत सुंदर प्रेममयी रचना..
mai hardik aabhari hun aap sabhi yaha aaye............
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