प्रेम गहरा हो , या आकर्षण ,
प्रेम , प्रेम ही होता है.....
चंचल मन को मिलन की तिश्नगी,
जीवन को दर्पण देता है|
तन,मन धन सर्वस्व न्योछावर ,
पथरीले राहों में मंजिल को संबल देता है|
दुःख-सुख के पलों में आलिंगन देता है
प्रेम गहरा हो , या आकर्षण ,
प्रेम , प्रेम ही होता है.....
अदभुत है इस प्रेम की रीत,
त्याग का दूजा नाम है प्रीत|
जहाँ त्याग नहीं हो प्यार में,
वो प्यार वफ़ा नहीं देता है |
प्रेम से सुगन्धित संसार है,
ये फूलोँ में काँटों का हार है|
त्याग,बलिदान,वफ़ा से ,
जुड़ा प्यार का नाता है|
सिर्फ प्रेम को पाना ही नहीं,
लूट जाना भी प्यार है|
संसार से जुड़ा हर रिश्ता प्रेम से गहराता है,
वो प्रेमी,प्रेमिका,भाई ,बहन, दोस्त,पिता - माता है |
प्रेम गहरा हो , या आकर्षण ,
प्रेम , प्रेम ही होता है.....
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
4 comments:
बेहतरीन कविता।
प्रेमदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर
पता नहीं क्यूँ गाने की यह लाइन याद आ रही है बार-बार आज के- गुज़रे हैं आज इश्क़ में हम उस मक़ाम से,
नफ़रत सी हो गयी है मुहब्बत के नाम से।
yashvant ji........hardik aabhar.......prem diwas ki shubhkamnayen.......
gafil ji hardik naman......
एक टिप्पणी भेजें