शनिवार, दिसंबर 31, 2011

हर शख्स पे तेरा चेहरा नज़र आने लगा है

अब  तो  हर शय  पर  तू   छाने   लगा   है
हर शख्स पे तेरा चेहरा नज़र आने  लगा है.                                                                     

चाहत में  मिलेगी ऐसी सज़ा  , मालूम न था                                      
 रह -रह  कर याद-ए-माज़ी  सताने  लगा  है.

भर जाते हैं ख़्वाब  आँखों में, नींद आये बिना,
तू तो जगती आँखों में सपना दिखाने लगा है.

यह   अदा-ए -बेन्याज़ी   जान ले लेगी  मेरी
तेरी   ख़ामोशी   मुझे पागल  बनाने लगा है.

कभी   वक़्त   को   हम     आज़माते     थे,
आज   वक़्त    हमें    आज़माने    लगा  है.

 अब    कटते    नहीं   हैं ये लम्हे ये घड़ियाँ,
मौसम   भी अपना    रंग  दिखाने   लगा है.

अब   तो हर   शय   पर तू   छाने  लगा  है,
हर शख्स पे तेरा चेहरा नज़र आने लगा है.



रविवार, दिसंबर 18, 2011

हौसले जब जवान होते हैं

हौसले       जब    जवान    होते     हैं,
ज़ेर    पा       आसमान    होते      हैं.

ग़म को    पीकर   जो  मुस्कुराते     हैं,
आदमी    वो     महान    होते        हैं.

मसालें     लेकर       अपने   हाथों   में,
अमन    के       पासबान     होते     हैं.

ताबे    परवाज़   जिनके    अन्दर    हो,
उनकी   ऊँची          उड़ान   होते     हैं.

राज़ कुछ तो  है   इस     तकल्लुफ का,
आप    क्यों        मेहरबान     होते   हैं.

शोज़-ए-ग़म    से   भरे   हुए    दिल  के,
पुरअसर        दास्तान        होते     हैं.

ज़ेरपा       बरिया          नशीनों      के,
ए     जमीन-   आसमान       होते    हैं.

टूटते  हैं        कलम   से       शमसीरें,
वैसे   ए           बेज़बान   होते         हैं.

मुझको भी उनपे  कुछ शक है, "रजनी"
वह      भी कुछ   बदगुमान     होते हैं.









रविवार, दिसंबर 11, 2011

मै दीया था सर-ए - राह जलता रहा,

  जिनको चाहा किये दोस्तों की तरह,
  वो बदलते रहे मौसमों की तरह .

मै दीया था सर-ए  - राह जलता रहा,
आंधियां तेज़ थी पागलों की तरह.


है तकद्दुस दिलों में  जर- ओ - माल का ,
जाने क्यों मंदिरों मस्जिदों की तरह.

वह घड़ी भर में झंझोड़ कर चल दिया,
मेरे जज्बात को आँधियों की तरह.

दास्तान -ए-दर्द  दिल मेरी आँखों से ,
आज "रजनी" रवाँ आंसुओं की तरह .

तकद्दुस--श्रद्धा
रवाँ -- बहना ,जारी रहना.

"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "

मंगलवार, दिसंबर 06, 2011

नसीब देखिये कैसे अजीब होते हैं

सुलगते दिल के शरारे अजीब होते है,
भड़कती आग के शोले अजीब होते है.

ढलक ही जाते हैं पलकों से क़तर-ए-आंसू,
ग़म-ए -जुदाई के लम्हे अजीब होते हैं.

तड़प   रहा है कोई, और सुलग रहा है कोई,
यह चाहतों के भी किस्से अजीब होते हैं.

जुबाँ खामोश निगाहों से बात होती है,
नज़र नज़र के इशारे अजीब होते हैं.

हुआ है शहर में गुम, ढूंढते हैं जंगल में,
जूनून-ए-इश्क के मारे अजीब होते हैं.

किसी की होके  भी "रजनी" किसी की हो ना सकी,
नसीब देखिये कैसे अजीब होते हैं.