"करीब आ कर भी मौत ,
ना कर सकी मेरा आलिंगन ,
किया जो मैंने आलिंगन तेरा ,
कोई और इस जहाँ से कुछ कर जायेगा.
छोड़ गयी मुझे देकर ये संदेशा,
शब्द तुझसे ही जिंदा हैं.
भाव मन का दर्पण, कवित कर्म को अर्पण,
खो गए जो शब्द, काव्य कहाँ बन पायेगा.
" रजनी"
डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर ( लारा ) झारखण्ड बोकारो थर्मल से । शिक्षा -इतिहास (प्रतिष्ठा)बी.ए. , संगणक विज्ञान बी.सी .ए. , हिंदी से बी.एड , हिंदी ,इतिहास में स्नातकोत्तर | हिंदी में पी.एच. डी. | | राष्ट्रीय मंचों पर काव्य पाठ | प्रथम काव्यकृति ----"स्वप्न मरते नहीं ग़ज़ल संग्रह " चाँदनी रात “ संकलन "काव्य संग्रह " ह्रदय तारों का स्पन्दन , पगडंडियाँ " व् मृगतृष्णा " में ग़ज़लें | हिंदी- उर्दू पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । कई राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित ।
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 30.5.11
Labels: करीब आ कर भी मौत, ना कर सकी मेरा आलिंगन, kahani
7 comments:
भाव मन का दर्पण, कवित कर्म को अर्पण,
खो गए जो शब्द, काव्य कहाँ बन पायेगा.
सच कहा ......बहुत अर्थपूर्ण पंक्तियाँ....
hardik aabhar monika ji....
kuchh dino tak tak fir safar jari hai . isliye blog se ,aap sabhi se dur rahungi .. 9 june tak ke liye
किया जो मैंने आलिंगन तेरा ,
कोई और इस जहाँ से कुछ कर जायेगा.
हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
sunder pankti
arthpurn rachna....:)
सच में बहुत सुंदर पंक्तियां है और भाव भी।
खो गए जो शब्द, काव्य कहाँ बन पायेगा.
बहुत सुंदर भावाव्यक्ति , बधाई
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