मानवता की समझ नहीं फिर कैसा इंसान
देगा सबकी वक़्त गवाही मत घबरा नादान
सड़कों पर बेबस सोती है भूख और बेकारी
महलों भीतर राज करे छलियों की चाटुकारी
इनके सम्मुख पानी भरते विभूतियाँ महान
देगा सबकी वक़्त गवाही मत घबरा नादान
दिल के भीतर दर्द छिपाए होठों पर मुस्कान
बाणों की शैय्या पर तड़पे जैसे भीष्म महान
हो कर रह गया जीवन सबका एक संग्राम
देगा सबकी वक़्त गवाही मत घबरा नादान
जब चलती वक़्त की चाल कुटिल होती है
बीच व्यूह में अभिमन्यु सा मर्यादा रोती है
तब खंडित हो जाता निर्धन जन का सम्मान
देगा सबकी वक़्त गवाही मत घबरा नादान
सच कहते हैं लोग होता वक़्त बड़ा बलवान
बड़े बड़े का हो जाता है चूर यहाँ अभिमान
इठलाया था रावण भी पा मुँहमाँगा वरदान
देगा सबकी वक़्त गवाही मत घबरा नादान
लोग होके हलकान धरती अम्बर को ताकें
आकर कोई पढ़े वेदना उनके मन में झाँके
कोरे कागज़ से रह जाते हैं उनके अरमान
देगा सबकी वक़्त गवाही मत घबरा नादान
भूख और ग़ुरबत ने ली कई लोगों की जान
बनती ऐसी चर्चित पँक्ति अखबारों की शान
समझौतों से चलता नहीं जीवन का जहान
देगा सबकी वक़्त गवाही मत घबरा नादान
" लारा मल्होत्रा नैय्यर ( रजनी)
बोकारो थर्मल ( झारखंड )
5 comments:
बहुत सुन्दर।
विश्व पुस्तक दिवस की बधाई हो।
🙏 सर
विश्व पुस्तक दिवस पर
अक्षर -अक्षर अमर हो गए पाकर रूप किताबों के
भाव उतर आए पन्नों में बढ़ गए क़ीमत जज़्बातों के
दोहे गीत ग़ज़ल कोई किस्सा कविता या फिर चौपाई
विषय बने दुनियादारी कुछ राजनीति की बातों के
"लारा"
घबराने से काम न चलेगा....
सुंदर
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