बंद कर दो मयकदों के दरवाज़े,
वो बनकर सुरूर छानेवाला है,
आज हंसकर बिखर जाओ,
फिज़ाओं में ,ऐ बहारो,
कि मेरा जान-ए - बहार आनेवाला है.
वो बनकर सुरूर छानेवाला है,
आज हंसकर बिखर जाओ,
फिज़ाओं में ,ऐ बहारो,
कि मेरा जान-ए - बहार आनेवाला है.
डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर ( लारा ) झारखण्ड बोकारो थर्मल से । शिक्षा -इतिहास (प्रतिष्ठा)बी.ए. , संगणक विज्ञान बी.सी .ए. , हिंदी से बी.एड , हिंदी ,इतिहास में स्नातकोत्तर | हिंदी में पी.एच. डी. | | राष्ट्रीय मंचों पर काव्य पाठ | प्रथम काव्यकृति ----"स्वप्न मरते नहीं ग़ज़ल संग्रह " चाँदनी रात “ संकलन "काव्य संग्रह " ह्रदय तारों का स्पन्दन , पगडंडियाँ " व् मृगतृष्णा " में ग़ज़लें | हिंदी- उर्दू पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । कई राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित ।
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 30.11.11
7 comments:
bahut khoob..
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!चर्चा मंच में शामिल होकर चर्चा को समृध्द बनाएं....
बहुत ही सुंदर रचना,..बधाई..शुभकामनाए,.
बहुत खूब....
सादर..
वाह!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
मै परीक्षा के व्यस्तता के कारण ब्लॉग तथा घर दोनों से दूर थी ,अथ माफ़ी चाहूंगी ब्लॉग साथियों से और ब्लॉग से दूर रहने की आपसबके टिप्णियों की कोई जवाब भी नहीं दे पाने का खेद है.......
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