वक़्त के बदलने से परिवर्तन काफी आये , इन परिवर्तनों के साथ नयी पीढ़ी की सोंच में भी बदलाव आते गए.
और इसी बदलाव के साथ एक अच्छी शुरुवात भी हुई ,और उसी बदलाव ने नारी के जीवन स्तर पर कुछ सुधार अवश्य किये, नारी भी अपनी इच्छा के मनचाही पढाई, मनचाही नौकरी के कारण घर से बाहर तक का सफ़र आसानी से तय करने लगी . पर एक जगह आज भी ऐसी है जहाँ अब तक काफी महिलाएं वही पुरानी विचारो की चादर में लिपटी लोगों की उसी विष बातों से आहत होती है. विवाहित महिलाएं (खास तौर से बहू ) कुछ जगहों पर अपने घर परिवार में समाज में जलील होती है शब्दों के वाणों से , जब वो वर्षो से चली आ रही पुरानी परम्परा रूपी दकियानूसी जंजीरों को तोड़ना चाहती है . उन विचारो का विरोध करती है जो उसके हक में नहीं उन्हें मानने से इनकार करती है तो उस पर अनेको लांक्षण लगने लगते है "बुरी औरत है, बदचलन है ,बदमाश है न जाने और क्या क्या उसे सुनने पड़ते हैं. इस पुरुष प्रधान समाज में आज भी पुरुषों को ज्यादा इज्ज़त दी जाती है महिलायों से, शिक्षित हों या अशिक्षित . यहाँ मै पति पुरुष की बात कर रही जिसके शान के सन्दर्भ में स्त्री को क्या क्या पाठ पढाया जाता है पति का नाम लेकर क्यों बुलाती हो पति की उम्र कम होगी, पति के जूठे बर्तन में खाओ तुम्हारी सदगति इसी में है. पति की हर बात को सुनो और मानों चाहे उसका फैसला गलत क्यों न हो अपनी जुबान मत खोलो...... और सबसे ज्यादा ज्यादती की बात तो तब होती है जब कोई स्त्री पुरुष के द्वारा पीटी जाती है उस स्त्री की गलती हो या न हो बस अपनी मर्दानगी साबित करने के लिए कितने पुरुष अपनी पत्नियों की बेबात ही पिटाई लगाते हैं .पुरुष चाहे एक थप्पड़ मारे या दस थप्पड़ उसे शान से मान दिया जाता है समाज में ,घर में खुद बड़ी बुजुर्ग महिलायों के मुंह से सुना जाता है औरत को मारते पिटते रहो तो वो काबू में रहेगी . पर ये बात भी सिर्फ बहू रूपी नारी के लिए इस्तेमाल करती हैं यदि किसी बात पर किसी बहू बेटे में लड़ाई हुई तो तपाक से ये शब्द इसे काबू में तब ही रख पाओगे जब इसकी धुलाई करोगे यानि की स्त्री का जन्म ही हुआ है जुल्म सहने के लिए ......और ये जुल्म सिर्फ बहू के लिए ,बेटी के लिए कोई माँ नहीं कहती की दामाद भी बेटी को मारे ,बस बेटे को ये पाठ पढाया जाता है बहू को पीटो काबू में रहेगी .और इसी तरह लड़ाई झगडे में किसी बात पर किसी पुरुष के मारने पर कोई स्त्री पलट कर हाथ छोड़ दे एक भी वार करे पलट कर तो उस स्त्री का जीना हराम कर देते हैं लोग, आस पड़ोस घर बाहर हर जगह यही ढिंढोरा पिट दिया जाता है ,गन्दी औरत है, बदचलन है, पति की इज्ज़त नहीं करती पति को मारती है न जाने क्या क्या . आखिर पति है उसको हक है पत्नी की पिटाई करने का ,पत्नी का धर्म है पिटाई खाना वो चाहे मार कुटाई के दौरान चाँद से चेहरे पर नक्काशी खिंच से या हाथ पैर तोड़ दे मुंह से आवाज भी मत निकालो बस पिटती रहो भगवान् जो हैं पति परमेश्वर हैं.. क्या स्त्री का मान समान नहीं ?? जब पुरुष को दस थप्पड़ के बदले सिर्फ एक थप्पड़ मिल जाता है स्त्री के हाथों तो पुरुष के मान सम्मान को आघात लगता है क्यों ? क्योंकि वो पुरुष है दम्भी है ,क्या स्त्री गुणी नहीं सम्मानित नहीं. ?????? सर्व गुण सम्पन होने के बावजूद आज भी अधिकांश स्त्रियाँ पिटती हैं पुरूषों के हाथों और इसकी जिम्मेवार सिर्फ स्त्री जाति ही है जो कभी माँ के रूप में कभी दादी के रूप में नानी चाची बन कर पुरुषो को सही संस्कार नहीं दे पाती ,उन्हें बस एक ही बात विरासत में आदिम काल से मिली है स्त्री का कोई वजूद नहीं पुरुष ही पुरुष है सभी जगह ,पर अफ़सोस ये सारी बातें हर स्त्री जाति के उपर लागु नहीं है , आज तक कभी किसी बेटी के लिए कोई माँ नहीं कहती उसकी बेटी की ससुराल में दुखी हो बल्कि बेटी को तो हर बार मायके आगमन पर ये सिखाया जाता है ki दामाद को कैसे अपने मुट्ठी में रखो क्या करो क्या न करो जिससे वो बेटी की ही गुण गाये, पर यही बात बेटा बहू पर जताए तो (जोरू का गुलाम ) बीवी का गुलाम मत बन, बहू की बात मत मान नहीं तो एक दिन अँगुलियों पर नचाएगी. .. और इसी डर से शुरू होता है बहू रूपी नारी का हर जगह शोषण .......... कितने जगहों पर बेकसूर स्त्री को भी पुरुष पूरी बात सुने बिना जाने बिना बस मार पिटाई कर देते हैं .जो स्त्री शांत है या ये समझ कर जीती आ रही की भाग्य में ही पति की मार लिखी है ,पति परमेश्वर होता है उसकी जायज नाजायज हर बार मेरे लिए मान्य है, वह तो हर दिन सब कुछ सहन कर सकती है ,पर जहा नारी स्वाभिमानी हो उसके अहम पर यही ठेंस लगती है तो उसका वो विरोध जरुर करती है और करेगी . जब विरोध में वो उतर जाये तो उसे कुल्टा, बदचलन ,गन्दी ,बुरी औरत और जैसी कितने नामों से सुशोभित किया जाता है ..... इसी दौर से कई नारी गुजर रही होंगी ......... आगे इसी से सम्बन्धित एक सत्य कहानी को उजागर करेगी मेरी अगली पोस्ट "
" वो बुरी औरत" की अगली कड़ी .... में"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
14 comments:
दुखद दास्तान.
नारी सदियों से एक अग्नि-परीक्षा के दौर से गुज़र रही है। एक दिन तो विजय निश्चित ही है। लेकिन इस संघर्ष में अपने अस्तित्व, अपनी मर्यादा और अपने सम्मान की रक्षा करना बहुत ज़रूरी है तभी जीत हासिल होगी।
नारी सदियों से एक अग्नि-परीक्षा के दौर से गुज़र रही है।
lekin jaisa ki aapne likha, nari nari ki hi dushman he
jo apni beti ko to kuch aur sikhati he , aur apni bahu se kuch aur apeksha rakhti he!~
नारी सदियों से एक अग्नि-परीक्षा के दौर से गुज़र रही है।
katu per saty
aap sabhi ko mera hardik aabhar....
rajesh ji.....
divya ji ......
sanjay ji......
khare ji.....
deep ji .....
aaditya ji....
अग्नि-परीक्षा के दौर दौर फिर दौर........
ह्रदय स्पर्शी लेख !आज के युग में नारी नारी की ही दुश्मन है..
Really touching,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
bahut bahut aabhar ....
sunil ji .....
madan ji .....
vivek ji .....
mere blog par aa kar mera utsahvardhan kiya .....
kitni ajeeb baat hae na, ek naari hi naari ko hamesha bandhan me rakhti hae, or wk din wo bhi tha jab wo khud is jageh par thi ye sabhi bhawnae kahan se aai kisi or ne to paeda nahin ki, kudh naari ne hi to aesi stithiyan banai, jo use dadiyon tak is roop me dale hue hae, ye ek ghar se shuru hota hae or phir samajik ho jata hae, dhara kisne banahi, iska jawab dine me mushkil hogi, quki kuchh uttar jante hue bhi, kisi ke muh se sunna jaruri samjhte hae. naari kon si agni pariksha se gujar rahi hae, jo ki khud uski dwara shuru ki gai or baad me wo riwaz si ban gai. seeta agar shri ravan ji ke ahan itne samay tak hai to ram bhi to itne hi baras kele rahe the. to unke stitw ki pariksha seeta ne qu nahi lee. jab power hote hue bhi use naa karo to uska faltu ka rona qu, sirf likhte raho or tippdi dete raho. jab tak hum unhe apne ghar me apply nahi karenge ue sabhi baaten khokhli rahiengi. shuruaat ghar se karo, quki wo hi samaj kaa shuruati mool hae.
maine ye lekh ki kahani ek saty ghatna par suru ki hai........... jo dhire dhire is baat ki parichayak ban jayegi ki nari kamjor nahi
मोह और अज्ञान ही सब समस्या की जड़ है.
यदि ज्ञान का प्रकाश होगा तो नारी हो या पुरुष
दोनों का ही विकास होगा.रजनी जी आपने
बहुत सुन्दर प्रस्तुति की है.आपके भावों और विचारों का मै आदर करता हूँ.
मेरे ब्लॉग पर आप आयीं इसके लिए बहुत बहुत आभार आपका.मैंने आपके ब्लॉग को फोलो कर लिया है.आप चाहें तो आप भी मेरे ब्लॉग को फोलो कर सकती हैं.
एक टिप्पणी भेजें