हर लम्हा अब मुझे तड़पा रहा है,
भीड़ में भी अकेलापन नज़र आ रहा है.
हर तरफ ख़ामोशी एक सवाल करती है,
अकेलापन अब जीना दुश्वार करती है.
कभी भागते फिरते थे वक़्त के साथ हम,
अब तो हर क्षण लगता है रुक गया है.
मेरी तरह शायद वो भी थक गया है,
चलते - चलते समय का चक्र रुक गया है.
रौशनी की किरण दूर नजर आ रही है,
लगता है शायद मुझे बुला रही है.
एक सितारा भी अगर मुझको मिल जाये,
तन्हाई में भी उम्मीद की किरण जगमगाए.
मिलने को तो सारा समन्दर मुझे मिला है,
पर समन्दर में कभी कोई गुल न खिला है.
पलकों पर अधूरे ख़्वाब न जाने क्यों आये,
जो बादल सा अब तक हैं पलकों पर छाये.
कभी तो बदलियों की ओट से चाँद नज़र आये
ऐसी अधूरी ख़्वाब कोई न सजाये.
पूरी होने से पहले जो ख़्वाब चूर हो जाते है,
टूटकर वो लम्हें बड़ा दर्द दे जाते हैं.
शीशे की उम्र सिर्फ शीशा ही बता पाता है,
या उसे पता है जो शीशे सा बिखर जाता है.
हमने भी ख़ुद को जोड़ा है तोड़कर,
अपने वजूद को एक जा किया है जोड़कर ,
टूट कर भी जुड़ना कहाँ हर किसी को आता है,
हर कोई कहाँ ऐसी क़िस्मत पाता है.
हर लम्हा जब तडपाये भीड़ भी तन्हा कर जाये
जीने की चाह में फिर जीने वाले कहाँ जाएँ.
हर लम्हा अब मुझे तड़पा रहा है,
भीड़ में भी अकेलापन नज़र आ रहा है.
"रजनी"
8 comments:
रौशनी की किरण दूर नजर आ रही है,
लगता है शायद मुझे बुला रही है.
"अब गहन तम का कोहरा हटते जा रहा है
सुबह का सूरज उजास की नई किरण ला रहा है"
शुभकामनाएं
दिल के सुंदर एहसास
हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।
lalit ji evma sanjay hi aapdono ka hardik sukriya.
lalit ji evm sanjay ji aapdono ka hardik sukriya.
शीशे की उम्र सिर्फ शीशा ही बता पाता है
या उसे पता है जो शीशे सा बिखर जाता है
वाह !!
भाव पूर्ण पंक्तियाँ
रचना प्रभावशाली है . . .
अभिवादन .
hardik sukriya aapka
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.
Rajniji - utam shabdo aur bhavo pe to aap ki pakad atulniy hai he
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