लोग कहते हैं मुझे,
बिन पिए ही झूमते हो,
क्या बताऊ ,
उनकी आँखों में ,
नशा ही,
सौ बोतल का है
ये नशा ,
शराब का नहीं,
उनकी आँखों का है.
सोमवार, जुलाई 26, 2010
ये नशा , शराब का नहीं, उनकी आँखों का है.
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डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर ( लारा ) झारखण्ड बोकारो थर्मल से । शिक्षा -इतिहास (प्रतिष्ठा)बी.ए. , संगणक विज्ञान बी.सी .ए. , हिंदी से बी.एड , हिंदी ,इतिहास में स्नातकोत्तर | हिंदी में पी.एच. डी. | | राष्ट्रीय मंचों पर काव्य पाठ | प्रथम काव्यकृति ----"स्वप्न मरते नहीं ग़ज़ल संग्रह " चाँदनी रात “ संकलन "काव्य संग्रह " ह्रदय तारों का स्पन्दन , पगडंडियाँ " व् मृगतृष्णा " में ग़ज़लें | हिंदी- उर्दू पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । कई राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित ।
लोग कहते हैं मुझे,
बिन पिए ही झूमते हो,
क्या बताऊ ,
उनकी आँखों में ,
नशा ही,
सौ बोतल का है
ये नशा ,
शराब का नहीं,
उनकी आँखों का है.
8 comments:
kya khub kahi aapne , wakai mein in akhon ka apna ek alag hi surror hota hai..............
बहुत सुंदर जी
आँखे तो मयखाना हैं।
आभार
hardik sukriya .........shailendra ji
lalit ji ....
nashe ka kya, wo bottle se ho, ya aankho se .....bas log jhumte rahte hain.......:)
hardik sukriya aapsabhi ko
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ver nice rajni ji badhai
sanjay ji ...........
amrendra ji aapdono ko hardik sukriya.
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