जिस आसमां ने मुझको चमकना सिखाया ,
आज खुद से वो ,क्यों मेरा दामन छुड़ा गया.
मै चाँद तो थी पर चमक ना थी मेरी,
दी रौशनी मुझे दमकना सीखा गया.
थी मंजिल मेरे निगाहों के आगे,
पग बन मेरे ,मुझे चलना सीखा गया.
अँधेरा हटाने को मेरे तम से मन के,
वो बना कर सितारा,मुझे ही जला गया .
"रजनी" (रात ) की ना कहीं सुबह है,
इस बात का वो अहसास दिला गया.
"रजनी"
रविवार, जून 27, 2010
जिस आसमां ने मुझको चमकना सिखाया ,.
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7 comments:
बहुत सुन्दर गीत..खूबसूरत.
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'पाखी की दुनिया' में इस बार 'कीचड़ फेंकने वाले ज्वालामुखी' !
hardik sukriya aapka.......
pakhi ko mera sneh .....
रचना अच्छी है। बधाई।
गहरी अभिव्यक्ति, धन्यवाद.
rajkumar ji aabhari hun..... ssneh namskaar........
sanjeev ji hardik abhinandan .........
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