गुफ्तगू से नहीं,लरज़ते अधर, सितम बोलते हैं,
भरम है उन्हें ,कि हम कम बोलते हैं.
निगाहें हँसती भी मेरी, लगे नम बोलते हैं,
भरम है उन्हें ,कि हम कम बोलते हैं.
किसी के हुनर को क़लम ,किसी के क़दम बोलते हैं,
कोई ले अल्फ़ाज़ों का सहारा,किसी के ग़म बोलते हैं.
गुफ्तगू से नहीं,लरज़ते अधर, सितम बोलते हैं,
भरम है उन्हें ,कि हम कम बोलते हैं.
जो तल्ख़ हों मिज़ाज से,उनके अहम बोलते हैं,
तुम भी कहोगे मुख्तारी से, जो हम बोलते हैं.
नादाँ हैं जो दिलनशीं को, संगदिल सनम बोलते हैं.
शरारा होता है जिनकी तहरीर में ,उनके दम बोलते हैं.
गुफ्तगू से नहीं,लरज़ते अधर, सितम बोलते हैं,
भरम है उन्हें ,कि हम कम बोलते हैं.
"रजनी "
13 comments:
वाह रजनी जी !
कम बोलते हैँ...............
hardik sukriya sir ji.....
sach me bhram hai ki aap kam bolte hain.......:P
aapne to itna kuchh bol diya......upar se aapke bol ki har panktiyan lajabab thi..........
saath hi photo wo char chand laga hi rahi hai..........hai na!!
bahut khoob...
aapsabhi ko mera sadar naman
Khoobsurat Rachna Ki hai aapne
wakai bahut acha likhi hain aap... acha lagtaa hai jb kavita ki mehek dil se aati hai... yeh 1 aisi hi kavita hai..aisa mera mannna hai
hardik naman ashok ji arpit ji.....
evm subodh sir aapko bhi bahut bahur sukriya aapka aana kafi achha laga.
kisike hunar ko kalam kisike kadam bolte hain
koi alfazon ka le sahara kisike gham bolte hain
AWESOME !~!
apki kavita bahut hi acchi hoti hai.
main hamesha padhta rahta hoon.
hardik sukriya aap dono ko.........
नए बिम्बों का बड़ी ही खूबसूरती से भावाभिव्यक्ति में प्रयोग किया है रजनी जी....बहुत अच्छी कविता.”
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