...
वक़्त की आंधी ने हमें रेत बना दिया,
हम भी कभी चट्टान हुआ करते थे |
आज हिम सा शून्य नज़र आ रहे हैं हम,
हम भी कभी रवि से तेज़ हुआ करते थे|
एक झंझावत से गिरे पंखुडियां , शूल रह गए
हम भी कभी गुलाबों से भरे गुलशन हुआ करते थे|
विवशता ने हमें सिन्धु सा बना दिया है शांत,
हम भी कभी मदमस्त उफनती सरिता हुआ करते थे|.
वो अपने ही थके क़दमों के निशां हैं,
जो कभी हिरणों सी चौकड़ियाँ भरा करते थे.|
वक़्त की आंधी ने हमें रेत बना दिया,
हम भी कभी चट्टान हुआ करते थे|
वक़्त की आंधी ने हमें रेत बना दिया,
हम भी कभी चट्टान हुआ करते थे |
मौसम के रुख ने हमें मोम बना दिया,
हम भी कभी धधकती आग हुआ करते थे|आज हिम सा शून्य नज़र आ रहे हैं हम,
हम भी कभी रवि से तेज़ हुआ करते थे|
एक झंझावत से गिरे पंखुडियां , शूल रह गए
हम भी कभी गुलाबों से भरे गुलशन हुआ करते थे|
विवशता ने हमें सिन्धु सा बना दिया है शांत,
हम भी कभी मदमस्त उफनती सरिता हुआ करते थे|.
वो अपने ही थके क़दमों के निशां हैं,
जो कभी हिरणों सी चौकड़ियाँ भरा करते थे.|
वक़्त की आंधी ने हमें रेत बना दिया,
हम भी कभी चट्टान हुआ करते थे|
3 comments:
wakt insaan ko kabhi kabhi itna majboor ker deta hai ki insaa bebas sa najer aata hai .....
bahut acchi lines .........lajwab.
एक झंझावत से गिरे पंखुडियां , शूल रह गए
bahaut hi acchi rachna hai ...god bless u
thanks amrendra ji ...........thanks vikas bhaiya ....
एक टिप्पणी भेजें