क्यों कहते हो ?
उन ख़्वाबों को,
कल तक जो
तुम्हारे थे
आज वो मेरे हैं |
ऐसा नहीं,
कि जो ख़्वाब
कल तक
तुम्हारे पलकों पर सजते थे
रूठ गए तुमसे |
सच तो ये है
अब वो
हमदोनों के हो गए हैं |
और जो एक हैं
उनमें कैसी दूरी
कैसा बंटवारा ?
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर ( लारा ) झारखण्ड बोकारो थर्मल से । शिक्षा -इतिहास (प्रतिष्ठा)बी.ए. , संगणक विज्ञान बी.सी .ए. , हिंदी से बी.एड , हिंदी ,इतिहास में स्नातकोत्तर | हिंदी में पी.एच. डी. | | राष्ट्रीय मंचों पर काव्य पाठ | प्रथम काव्यकृति ----"स्वप्न मरते नहीं ग़ज़ल संग्रह " चाँदनी रात “ संकलन "काव्य संग्रह " ह्रदय तारों का स्पन्दन , पगडंडियाँ " व् मृगतृष्णा " में ग़ज़लें | हिंदी- उर्दू पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । कई राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित ।
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 14.9.10 11 comments
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"कहते हैं लोग महबूब सनम को,
बदल गयी तुम्हारी नज़रे,
पर ये समझ नहीं पाते,
वो भी तड़पा होगा उसी तरह ,
खुद को बदलने में,
जैसे आत्मा तड़पती है,
तन से निकलने में."
-"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 13.9.10 5 comments
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"समझ ना पाए वो ,
चाहत हमारी बताने के भी बाद ,
कभी आंसू हटाया था रुखसार से मेरे,
आज डूबने को छोड़ गए ,
भर कर सैलाब."
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 8.9.10 5 comments
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Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 7.9.10 4 comments
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गुलजार है गुलशन मेरा आज भी तसव्वुर में ,
हर जर्रे में तू है ये अहसास तो है ,
उन कहकहों का क्या करूँ ?
जो याद आ कर आज दिल को जलाती हैं ".
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 26.8.10 9 comments
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Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 21.8.10 9 comments
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जीवन की सफर में लय से सुर को छूटते देखा है.
अक्सर लोगों को बन कर भी बिखरते देखा है,
एक छोटी सी भटकाव भी बदल देती है रास्ता.
मंजिल तक आकर कदम फिसलते देखा है.
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 20.8.10 2 comments
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"बदलती है किस्मत जो रूख अपना,
हर चाह सिसक कर तब आह बन जाती है,
वफा करके भी जब बेगैरत ज़िन्दगी से ,
ज़फ़ा की सौगात मिल जाती है. "
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 20.8.10 0 comments
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ek urdu shayri zindaki ke bare me
रु-ये -ज़िन्दगी उतनी हँसीं नहीं, मालूम तब होता है जब दर्स दे जाती है,
दौरे-अय्याम जब सरशारी-ये -मंजिल से पहले नामुरादी जबीं पे सिकन लाती हैं.
रु-ये -ज़िन्दगी --- ज़िन्दगी का चेहरा
दर्स -- सबक
दौरे-अय्याम --समय का फेर
सरशारी-ये -मंजिल -- मंजिल की पहुँच
नामुरादी ------ असफलता
जबीं पे -- माथे पे
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 20.8.10 2 comments
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छूट गया निगाहों का मिलकर मुस्कुराना,
आज जब भी भीगती हैं निगाहें तो हौले से मुस्काती हैं,
तेरे यादों का मेरी निगाहों से जाने कौन सा नाता है.
तस्वुर में जब भी आता है भीग कर भी मुस्कुराती हैं निगाहें.
Posted by डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) at 19.8.10 0 comments
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