कहाँ रह गये हो चले आओ हमदम
यहाँ सर्दियों का गुलाबी है मौसम
दिसम्बर महीना कड़ाके की सर्दी
गिरा कर के पारा दिखाती है दमख़म
घने कोहरे में वो सूरज छिपा है
धरा पर बिछी शाख़ फूलों पे शबनम
रजाई के अंदर दुबक कर रहें हम
मिले गर्म कॉफी यही चाहे आलम
हवाएँ ये ठंडी लगें जब भी तन को
ये नश्तर सी चुभती करें साँसें बेदम
"डॉ" रजनी मल्होत्रा नैय्यर
बोकारो थर्मल
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