ग़ज़ल
साथ चलते क़दम को मिलाओ कभी
बढ़ रहे फ़ासलों को मिटाओ कभी
ढाल बन कर रहें जो दुआ की तरह
उनके सजदे में सर को झुकाओ कभी
दो घड़ी भी किसी की जगा दे अना
वो समां इस तरह से जलाओ कभी
आपका साथ है कारवां की तरह
हाँ यही तुम भी गुनगुनाओ कभी
इसलिए रूठने का दिखावा किया
पास आकर हमें तुम मनाओ कभी
खो गया इस जहाँ से अम्न का निशां
गीत कोई अमन का सुनाओ कभी
बेसबब टूट कर ये बिखर जाएँगे
हौसलों को नहीं आज़माओ कभी
सुन जिसे गुनगुनाते रहें उम्र भर
साथियों को ग़ज़ल वो सुनाओ कभी
साथ चलते क़दम को मिलाओ कभी
बढ़ रहे फ़ासलों को मिटाओ कभी
ढाल बन कर रहें जो दुआ की तरह
उनके सजदे में सर को झुकाओ कभी
दो घड़ी भी किसी की जगा दे अना
वो समां इस तरह से जलाओ कभी
आपका साथ है कारवां की तरह
हाँ यही तुम भी गुनगुनाओ कभी
इसलिए रूठने का दिखावा किया
पास आकर हमें तुम मनाओ कभी
खो गया इस जहाँ से अम्न का निशां
गीत कोई अमन का सुनाओ कभी
बेसबब टूट कर ये बिखर जाएँगे
हौसलों को नहीं आज़माओ कभी
सुन जिसे गुनगुनाते रहें उम्र भर
साथियों को ग़ज़ल वो सुनाओ कभी
1 comments:
बहुत गज़ब लिखा जी।क्या बात क्या बात ।
शानदार पंक्तियों से सजी पोस्ट । जारी रहिए 🙏🙏🙏🙏
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