"अंतहीन सड़क " स्त्री के अस्मिता पर लगे प्रश्न (पुस्तक समीक्षा )
"अंतहीन सड़क " लेखक के द्वारा अपने अंदाज़ में प्रस्तुत करती हुई स्त्री के अस्मिता पर लगे प्रश्न पर एक उपन्यासिका या यूँ कहें लम्बी कहानी है | शोधात्मक रुप मेँ कथात्मक शैली मेँ प्रस्तुत एक ऐसी कोशिश है जिसपर नारी विमर्श का ढोल पीटते किसी अन्य पुरुष या महिला रचनाकारों का उतने विस्तृत तौर पर ध्यान यही गया जितना की अविनाश ने अपने साहस के साथ इस विषय पर भरपूर प्रयत्न किया है | कहानी चार मित्रों के जरिये आगे बढ़ती है , जिसे आरम्भ करती हैँ कलकत्ता की ख़ुद एक मुस्लिम लड़की नुसरत परवीन | एल.एल.बी. के अध्ययन के लिए अविनाश , जमशेदपुर का विवेक तथा कलकत्ता का असफाक साथ-साथ रहते हैँ | नुसरत वाराणसी में ही रहती है वह इनलोगो के साथ घुलमिल जाती है और यहीं से शुरू होता है पढ़ाई के दौरान वेश्या जीवन के अंत के लिए चारोँ का प्रयत्न |चारोँ का संकल्प होता है कि वेश्या जीवन के अंत के लिए प्रयत्न किया जाए । वेश्या बनने के कारणोँ की तलाश हो । चारोँ सम्मिलित हो साहस और निस्संकोच रुप से वेश्याओँ के पास जाते हैँ । कहीँ-कहीँ फीस चुकाते हैँ । उनकी कोठरी मेँ प्रवेश करते हैँ ।वहाँ की गंदगी और परिस्थिति से रुब-रु होते हैँ । वेश्याओँ से बात करते हैँ । उन्हेँ विश्वास मेँ लेते हैँ । उनकी जीवन-गाथा से परिचित होते हैँ । उन्हेँ नये जीवन के शुरुआत करने के लिए प्रेरित करते हैँ । कुछ
वेश्याएँ अपनी विकल्पहीनता की बात करती हैँ । कुछ सामाजिक भय का उल्लेख
करती है । कुछ आर्थिक विपन्नता बतलाती हैँ । कुछ बताती हैं कैसे उन्हें दर्दनाक पीड़ा देकर जबरन इस दलदल में उतारा जाता है | उपन्यास में वैदिक काल की अप्सराएं और गणिकाएं , मध्य युग की देवदासियां और नगरवधुएँ मुगलकाल की बारंगनाएँ | हर युग में स्त्री की यही त्रासदी दुहरती रहीं जिस सड़क पर वो आ गयी उसका कहनी अंत नही | लेखक ने “ अंतहीन सड़क” कुछ सोचकर ही नाम दिया |
कोई लड़की कैसे पहुँचती है इस दलदल में ? एक बड़ा सवाल है इसे भी परवीन अपने अंदाज़ में कहती नज़र आती है आधुनिक युग में स्त्रियों को वेश्यावृति की ओर प्रेरित करनेवाले कई कारण हैं जिनमे पहला कारण आर्थिक मजबूरी , दूसरा कारण स्वार्थी और लोलुप होना ,विवाह संस्कार के कठोर नियम, दहेज़ प्रथा, विधवा विवाह पत्रिबंध, अनमेल विवाह तलाक और उनसबके साथ - साथ चरित्रहीन माता -पिता अथवा साथियों का साथ ,अश्लील साहित्य, चलचित्रों में कामोत्तेजक प्रसंगों का बाहुल्य |
इसके बाद एक मनोवैज्ञानिक कारण भी है -- कतिपय स्त्री-पुरुष में काम प्रवृति का प्रबल होना यहाँ इसके बाद वैवाहिक जीवन से बाहर उस संतुष्टि की खोज वैवाहिक जीवन को घोर नारकीय बना देती है , पुरुष का बिछाया हर विसात उसका हो जाता है पर स्त्री बिखर जाती है| कई बार प्रेमी प्रेमिका के साथ छलकपट कर , इन्हेँ वेश्यालय मेँ बेच देते हैँ । सुन्दर औरतेँ कमाई का साधन नहीँ होने से सेक्स की कमाई से जीवनयापनकरती हैँ । कार्यालयोँ मेँ नियुक्ति , पदोन्नति का लाभ लेने के लिए लड़कियोँ/औरतोँ को शरीर समर्पण करना पड़ता है | आजकल कॉलेज जीवन या स्कुली जीवन मेँ ब्वायफ्रेँड , गर्लफ्रेँड की
संस्कृति से हुए धोखोँ के बाद समाज से बहिष्कृत लड़कियाँ वेश्या का कार्य
करने के लिए मजबूर हो जाती हैँ ।
'अंतहीन सड़क' उपन्यास मेँ संजय कुमार'अविनाश' ने इसमेँ अविनाश , दिव्या {फरहद} , परवीन ,असफाक , योगेन्द्र राय , विवेक , प्रभा , शुभम , सारिका , कशिश , आयशा ,
शमीम जैसे सार्थक एवं समर्थ पात्रोँ के माध्यम से वेश्यालय की कार्यविधि को बहुत साफ रुप से खुलासा किया गया है । वेश्याएं शाम होते ही सजी- धजी सड़क के किनारे या गलियों में अपने ग्राहक का इंतज़ार करती हैं रात को सुहागन सी रहकर सुबह बिलकुल वेवा सी बन जाती हैं उपन्यास की पात्र दिव्या कहती है " हम हर रात दुल्हन होती हैं सुबह वेवा हो जाती हैं " हर शाम एक रंगीन सपना लेकर आती है जिसमेँ बड़े - बड़े पूंजीपति लोग अपनी इज्जत को डुबाते और रंगीन सपनोँ मेँ रंगते हैँ ।इस तरह इज्जतदार लोग गंदगी मेँ डूबने मेँ अपना गौरव समझते हैँ । वे यहनहीँ सोचते कि इन्हेँ इज्जतदार जीवन जीना है । अपने चरित्र की सुरक्षा
करनी है । वे अपनी ही बहू-बेटियोँ की इज्जत सुरक्षित नहीँ रहने देते ।वेश्यालय पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता है । कानूनी या गैरकानूनी स्तर पर । समाज ऐसी गंदी जगह खुद बनाता है । यह उपन्यास एक सामाजिक कैँसर की तरह है जिसका कोई इलाज आजतक नहीँ खोजा जा सका है । विदेशोँ मेँ तो वेश्यालय खुलेआम बहुत ज्यादा चल रहे हैँ । भारत मेँ भी अब इसकी नकल हो रही है । इसीलिए अबभारत मेँ वेश्यालयोँ की संख्या बढ़ रही है । औरतेँ भौतिकवादी सुविधाओँ की उपलब्धि के लिए सेक्स वर्कर का कार्य करने से नहीँ सकुचातीँ , बल्कि अपने को गौरवान्वित समझती हैँ । यह अंतहीन सड़क अच्छी नहीँ । फिर भी समाज का हर आदमी बिना सोच-समझे इसपर दौड़ने को आतुर है । लेखक ने आंकड़ोँ का प्रयोग किया जानकारी दी कि आज कुल लगभग ग्यारह सौ सत्तर रेड लाइट एरिया है जिनमेँ यौन कर्मियोँ की संख्या लगभग तीस लाख है । सन् 1956ई.मेँ आजादी के बाद भारत सरकार ने सिता एक्ट लाया था । जिसके अनुसार
शारीरिक-व्यपार प्रतिबंधित हुआ था केवल मनोरंजन के लिए गायन की स्वीकृति
थी । परन्तु , वेश्यावृत्ति रुकी नहीँ बढ़ती गयी ।
पुन: 1986ई. मेँ पिटा एक्ट वेश्याओँ के सुधार के लिए लाया गया । उच्चतम न्यायलय ने भी पूर्णत: वेश्यावृत्ति पर रोक का कानून पारित नहीँ किया है।सम्प्रति , भारत के महानगरोँ मेँ देह-व्यपार प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रुप से जारी है । हमारे हिंदुस्तान में सबसे बड़ा रेड लाईट एरियाकलकत्ता का सोनागाछी, मुंबई में कमाठीपुरा,दिल्ली में जी.बी. रोड. ग्वालियर में रेशमपुरा, वाराणसी में दालमंडी, सहारनपुर में नक्कास बाजारमुज्जफरपुर में चतुर्भुज स्थान , नागपुर में गंगायमुना\ वेश्यावृत्ति के विविध प्रकार है । बड़े-बड़े होटलोँ मेँ कॉल गर्ल्स उपलब्ध है ।संजय कुमार अविनाश ने पूरे देश के उन स्थानोँ का विस्तृत ब्योरा दिया है जहाँ वेश्यालय है । लाखोँ मेँ उनकी संख्या है ।
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निष्कर्ष
अंतहीन सड़क को पढ़ने के बाद निष्कर्ष के रूप में स्त्रियों का वेश्यावृति की ओर बढ़ता हुआ
आँकड़ा यही कहता है कि स्त्री का शोषण हर युग में होता रहा, कहीं गणिका, कहीं नगरवधू, कहीं देवदासी के नाम से | राजाओँ के दरबारोँ मेँ , देवताओँ के दरबारोँ मेँ वेश्याएं थीँ जिनसे वे इच्छानुरुप काम लेते थे । अप्सराएं इस तरह के कार्य करती थीँ । विषकन्याएं भी । इनसे जासूसी का काम भी लिया जाता रहा है । प्रेम के जाल मेँ फंसाकर रहस्योँ की खोज करना इनका काम रहा है ।अब स्वतंत्र भारत मेँ भी लगभग सभी शहरोँ मेँ वेश्यावृति है । कहीँ रजिस्टर्ड , कहीँ बिना घोषित । सेक्स वर्कर अपने जीवनयापन के लिए यह कार्य करती हैँ । 65प्रतिशत वेश्याएँ आर्थिक विवशता के कारण बनती है । विवाह-संस्कार के कठोर नियम , दहेज-प्रथा , विधवा विवाह का प्रतिबंधित होना , बलात्कार , अनमेल विवाह तथा तलाक आदि अन्य प्रधानकारण है जो वेश्याओँ को जन्म देते हैँ । कॉलेज जीवन या स्कुली जीवन मेँ ब्वायफ्रेँड , गर्लफ्रेँड की संस्कृति से हुए धोखोँ के बाद समाज से बहिष्कृत लड़कियाँ |आज कुछ स्त्रियाँ भौतिकवादी सुविधाओँ की उपलब्धि के लिए कम मेहनत में ज्यादा पैसे
की लालच में आकर, कुछ काम पिपासा की शांति के लिए वेश्यावृति को अपना रहीं |
वेश्याओँ का निजी जीवन कितना कंटकाकीर्ण और अंधकारपूर्ण है , यह सबकुछ इस रचना मेँ यथार्थवादी ढ़ंग से व्यक्त किया गया है । इसमें स्त्री अंगों से जुड़े कई कथानक भी जुड़े हैं पर कहीं से भी ये कामुक नहीं कही जा सकती | कहानी के भाग स्त्रियों के जीवन के है वो त्रासद अंश हैं जिन्हे जीने पर मजबूर हुई स्त्री की व्यथा का ढोल है ,पर पीटने पर आवाज़ नहीं करती विस्मित कर रही है | क्योंकि , इस बिहार प्रदेश होने के कारण भाषा में थोड़ी सी कमजोरी कहीं-कहीं नज़र आती है | ("अंतहीन सड़क" ) में वेश्याओँ के प्रति आकर्षण नहीँ बल्कि विकर्षण है । पात्र दिव्या के द्वारा दिए गए संवाद दार्शनिक शैलीमेँ वार्तालाप , उपदेशात्मक होते हुए यह शोधग्रन्थ की तरह लगता है , पर पाठकों को भटकने नहीं देगी | इस पुस्तक में वो प्रयास किये गए हैं जो वेश्याओं के नारकीय जीवन से मुक्ति का आगाज़ लगता है …
" रजनी मल्होत्रा नैय्यर "
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